Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
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वह कर्म कौन है ? असातावेदनीय, अरति, शोक अस्थिर, अशुभ और अयश: कीर्ति रूप प्रकृतियों के भेद से वह कर्म छह प्रकार का है। देवायु के बन्ध का आरम्भ प्रमाद हेतुक भी होता है और उसके नजदीक का अप्रमाद हेतुक भी, अत: इसका अभाव होने पर आगे उसका संवर जानना चाहिए, जिस कर्म का मात्र कषाय के निमित्त से आस्रव होता है, प्रमादादिक के अभाव में होने वाला वह कषाय तीव्र, मध्यम और जघन्य रूप से तीन गुण स्थानों में अवस्थित है। उनमें से अपूर्वकरण गुणस्थान के प्रारम्भिक संख्येय भाग में निद्रा और प्रचला ये दो कर्म प्रकृतियाँ बन्ध को प्राप्त होती हैं। इससे आगे संख्येय भाग में देवगति, पंचेन्द्रिय जाति, वैक्रियिक शरीर, आहारक शरीर, तैजस शरीर, कार्माण शरीर, समुचतुरस्र संस्थान, वैक्रियिक शरीर अंगोपांग, आहारक शरीर अंगोपांग, वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श, देवगति प्रायोग्यानूपूर्वी, अगुरुलघु, उपघात, परघात, उच्छ्वास, प्रशस्त, विहायोगति, त्रस, बादर, पर्याप्त, प्रत्येक शरीर, स्थिर, शुभ, सुभग, सुस्वर, आदेय, निर्माण और तीर्थंकर ये तीस प्रकृतियाँ बन्धको प्राप्त होती हैं तथा इसी गुणस्थान के अन्तिम समय में हास्य, रति, भय और जुगुप्सा ये चार प्रकृतियाँ बन्ध को प्राप्त होती हैं। ये तीव्र कषाय से आम्रव को प्राप्त होने वाली प्रकृतियाँ हैं, इसलिए तीव्र कषाय का उत्तरोत्तर अभाव होने से विवक्षित भाग के आगे उनका संवर होता है। अनिवृत्ति बादर साम्पराय के प्रथम समय से लेकर उसके संख्यात भागों में पुवेद और क्रोध संज्वलन का बन्ध होता है। इससे आगे शेष रहे संख्यात. भागों में मान संज्वलन और माया संज्वलन ये दो प्रकृतियाँ बन्ध को प्राप्त होती हैं और उसी के अन्तिम समय में लोभ संज्वलन बन्ध को प्राप्त होता है। इन प्रकृतियों का मध्यम कषाय के निमित्त से आम्रव होता है अतएव मध्यम कषाय का उत्तरोत्तर अभाव होने पर विवक्षित भाग के आगे उनका संवर होता है। मन्द कषाय के निमित्त से आस्रव को प्राप्त होने वाली पांच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण, यश: कीर्ति, उच्चगोत्र और पाँच अन्तराय इन सोलह प्रकृतियों का सूक्ष्मसाम्यराय जीव बन्ध करता है, अतः मन्द कषाय का अभाव होने से आगे इनका संवर होता है। केवल योग के निमित्त से आम्रव को प्राप्त होने वाली असाता वेदनीय का उपशान्त कषाय, क्षीणकषाय और संयोग केवली जीवों के बन्ध होता है। योग का अभाव हो जाने से
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