Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
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(27) दुर्भग नामकर्म:- रूपवान्, सौन्दर्यखान होते हुए भी जिस कर्म के उदय से दूसरों को प्यारा न लगे, दूसरे उससे प्रीति न करें, किन्तु जो दूसरों को अप्रीति का कारण होता है, अप्रीतिका प्रतीत होता है, वह दुर्भग नामकर्म
(28) सुस्वर नामकर्म:- जिस कर्म के उदय से अन्य जनों के मन को मोहित करने वाले मनोज्ञ स्वर हों, जिसका स्वर सबको कर्णप्रिय लगे, वह सुस्वर नामकर्म है। (29) दुःस्वर नामकर्म:- जिसके उदय के कर्कश, अमनोज्ञ, कर्णकटु स्वर की प्राप्ति हो, वह दुःस्वर नामकर्म है। (30) शुभ नामकर्म:- जिसके उदय से शरीर देखने या सुनने पर प्राणी, का शरीर रमणीय प्रतीत हो, वह शुभ नाम कर्म है। (31) अशुभ नामकर्म:- शुभ से विपरीत अशुभ है अर्थात् देखने व सुनने वाले को प्राणी का शरीरं रमणीय प्रतीत नहीं होता है, वह अशुभ नामकर्म
(32) सूक्ष्म नामकर्म:- सूक्ष्म शरीर की रचना का कर्ता सूक्ष्म शरीर नाम कर्म है। अर्थात् जिस कर्म के उदय से अन्य जीवों के अनुग्रह या उपघात के अयोग्य सूक्ष्म शरीर की प्राप्ति होती है, वह सूक्ष्म नामकर्म है। (33) स्थूल नामकर्म:- जिस कर्म के उदय से अन्य जीवों को बाधाकारक शरीर प्राप्त होता है, वह स्थूल नाम कर्म है। जो किसी से रुकता नहीं किसी को रोकता नहीं, जिसका किसी के द्वारा घात नहीं, वह सूक्ष्म नाम कर्म है, उससे विपरीत स्थूल नामकर्म है। (34) पर्याप्ति नामकर्म:- जिसके उदय से आत्मा अन्तर्मुहर्त में आहारादि पर्याप्तियों को पूर्ण करने में समर्थ हो जाता है, पर्याप्तियों को पूर्ण कर लेता है उसे पर्याप्ति नाम कर्म कहते है। आहार पर्याप्ति, शरीर पर्याप्ति, इन्द्रिय पर्याप्ति, श्वासोच्छ्वास पर्याप्ति, भाषा पर्याप्ति और मनः पर्याप्ति, ये छह पर्याप्तियाँ है। . प्रश्न :- श्वासोच्छवास नामकर्म के उदय होने पर वायु का निष्क्रमण और
प्रवेशात्मक फल होता है अर्थात् श्वासोच्छावास नाम कर्म के उदय से उदरस्थ वायु बाहर निकलती है। और बाहर की वायु को आत्मा
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