Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
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प्रदेश संश्लेष जिसके द्वारा होता है वह बन्ध नाम कर्म कहलाता है, यही अस्थि आदि का परस्पर बन्धन करता है। इसके अभाव में शरीर प्रदेश लकड़ियों के ढेर के समान परस्पर पृथक-पृथक् रहेंगे। (7) संघात:- अविवर (निश्छिद्र) भाव से पुद्गलों का परस्पर एकत्व हो जाना, संगठन हो जाना संघात नाम कर्म है। जिसके उदय से औदारिक आदि शरीरों के प्रदेशों का परस्पर निश्छिद्र रूप से संश्लिष्ट संगठन हो जाता हैं वह संघात नाम कर्म हैं। (8) संस्थान नाम कर्म:- जिसके कारण शरीर की आकृति बनती है वह संस्थान नाम कर्म है। जिसके उदय से औदारिक आदि शरीर की आकृति (आकार) की निष्पति होती है, वह संस्थान नाम कर्म है। वह संस्थान छह प्रकार का हैं- (1) समचतुरस्रसंस्थान, 2. न्यग्रोधपरिमण्डल संस्थान (3) स्वाति संस्थान, (4) कुब्जक संस्थान (5) वामन संस्थान और हुण्डक संस्थान (1) समचतुरस्र संस्थान:- ऊपर, नीचे और मध्य में कुशल शिल्पी के द्वारा रचित समचक्र की तरह समान रूप से शरीर के अवयवों का सन्निवेश (रचना) होना, आकार बनना समचतुरस्र संस्थान है। (2) न्यग्रोधपरिमण्डल संस्थान:- न्यग्रोध (बड़) वृक्ष के समान नाभि के ऊपर शरीर में स्थूलत्व और नीचे के भाग में लघु प्रदेशों की रचना होना न्यग्रोधपरिमण्डल संस्थान है। इसमें न्यग्रोध (वट वृक्ष) के समान देह की रचना होती है इसलिये इसका सार्थक नाम न्यग्रोधपरिमण्डल संस्थान है। (3) स्वाति संस्थान:- इससे विपरीत ऊपर लघु और नीचे भारी, सर्प की बांबी के समान आकृति वाला स्वाति संस्थान हैं। (4) कुब्जक संस्थान:- पीठ पर बहुत पुद्गल पिण्ड प्रचय विशेष लक्षण का निर्वर्तक कुब्जक संस्थान है, अथवा पीठ का टेढ़ी हो जाना कुब्जक संस्थान का कार्य है। (5) वामन संस्थान:- सर्व अंग और उपागों को छोटा बनाने में जो कारण होता है वह वामन संस्थान हैं। (6) हण्डक संस्थान:- सर्व अंगों और उपांगों की आकृति हण्ड की तरह रचना हुण्डक संस्थान है। अर्थात् शारीरिक विकृत संस्थान को हुण्डक संस्थान कहते है।
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