Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
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गाय के मूत्र रेखा और अवलेखनी खुरपा आदि के सदृश चार प्रकार की है। 4. लोभ - जीव के अनुग्राहक-उपकारक धन आदि की विशेष आकांक्षा लोभ है। कृमिराग, कज्जल, कर्दम (कीचड़) और हरिद्रा (हल्दी) के राग सदृश भेद से लोभ, चार प्रकार का है। इन क्रोध, मान, माया और लोभ की चार-चार अवस्थाएँ हैं। अनन्तानुबन्धी क्रोध, मान, माया, लोभ; अप्रत्याख्यान क्रोध, मान, माया, लोभ; प्रत्याख्यान क्रोध, मान, माया, लोभ और संज्वलन क्रोध, मान, माया, लोभ। I अनन्तानुबन्धी- अनन्त संसार का कारण होने से मिथ्यादर्शन को अनंत कहते हैं। उस अनन्त (मिथ्यात्व) को बाँधने वाली (वा उसका अनुसरण करने वाली) कषाय अनन्तानुबंधी कहलाती है अर्थात् मिथ्यादर्शन को बाँधने वाले क्रोध, मान, माया, और लोभ अनंतानुबंधी है। II अप्रत्याख्यानावरण - जिसके उदय से यह प्राणी ईषत् (अल्प) भी देशविरत संयमासंयम नामक व्रत को स्वीकार नहीं कर सकता, स्वल्प मात्र भी व्रत प्राप्त नहीं कर सकता वह देशविरत प्रत्याख्यान का आवरण करने वाली अप्रत्याख्यानावरण क्रोध, मान, माया और लोभ कषाय है। III प्रत्याख्यानावरण-जिसके उदय से सकल विरति और सकल संयम को धारण नहीं कर सकता, वह समस्त प्रत्याख्यान- सर्व त्याग को रोकने वाली कषाय प्रत्याख्यावरण क्रोध, मान, माया, लोभ है। IV संज्वलन - जो 'सम' अर्थात् एकीभाव से संयम के साथ सहावस्थान होने से एकीभूत होकर जलती रहे, अथवा जिसके रहने पर भी संयम हो सकता है, वह संज्वलन क्रोध, मान, माया और लोभ कषाय है। इस प्रकार इनका समुदाय करने पर 16 कषाय होती हैं।
आयुकर्म के भेद
नारकतैर्यग्योनमानुषदैवानि। (10) आयु Age karma bondage is of 4 kinds according as it determines: 1. नरक Hellish. 2. तिर्यक् Sub-human.. 3. मनुष्य Human
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