Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
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का ही एक प्रकार है फिर भी कुछ अर्थविशेष की उत्पत्ति होने से इनमें अन्तर है। अपने दोषों को ढकना जुगुप्सा है। (7) स्त्रीवेद - जिस नो कषाय के उदय से कोमलता, अस्फुटता, क्लीवता, कामावेश, नेत्रविभ्रम, आस्फालन, पुरूष की इच्छा आदि स्त्री भावों को आत्मा प्राप्त होती है वह स्त्रीवेद है। जब स्त्रीवेद का उदय होता है तब इतर पुरूष
और नपुंसकवेद कर्म की सत्ता गौण रूप से अवस्थित रहती है। प्रश्न - लोक में योनि, मृदु स्तनादि चिन्ह से स्त्रीवेद की प्रतीति होती है। उत्तर – शरीर में जो स्तन, योनि आदि चिन्ह हैं वे नामकर्म के उदय के कारण
होते हैं। अत: द्रव्य से पुरुषवेद का उदय होने पर भी भाव से स्त्रीवेदका वा नपुंसकवेद का उदय हो सकता है। द्रव्य स्त्रीवेद के उदय में भाव पुरूष या नपुंसक का तथा द्रव्य से नपुंसकवेद का उदय होने पर भी आभ्यन्तर विशेष भाव की अपेक्षा पुरूष और स्त्रीवेद का उदय हो सकता है। शरीर आकार तो नामकर्म की रचना है और भाववेद मोहनीय
कर्म के उदय से होता है, इस प्रकार इन दोनों का वर्णन है। (8) पुरूषवेद - जिस कर्म के उदय से आत्मा पुरूष भाव को प्राप्त होता है, वह पुरूषवेद है। (9) नपुंसकवेद - जिस कर्म के उदय से नपुंसक भावों को प्राप्त होता है, यह नपुंसक वेद है। कषायवेदनीय सोलह प्रकार की है - क्रोध, मान, माया और लोभ के भेद से कषाय चार प्रकार की है। क्रोध - अपने और पर के उपघात अनुपकार आदि से आहित (प्राप्त) क्रूर परिणाम या अमर्ष भाव क्रोध है। वह क्रोध पर्वत रेखा, पृथ्वी रेखा, धूलि रेखा और जलरेखा के समान चार प्रकार का है। मान - जाति, ज्ञान, कुल, शरीर, तप, पूजा, ऐश्वर्य आदि के मद के कारण दूसरों के प्रति नमने की वृत्ति नहीं होना मान कषाय है। यह मान शैल स्तम्भ, अस्थि स्तम्भ, दारू (लकड़ी) स्तम्भ और लता समान भेद से चार प्रकार का है। 3. माया - दूसरों को ठगने के लिये जो छल-कपट और कुटिल भाव होते हैं वह माया है। यह माया, बाँस वृक्ष की गँठीली जड़, मेष (मेढ़े) की सींग,
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