Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
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नहीं है इसलिए उसके व्रत अल्प होते हैं। यह त्रस जीवों की हिंसा का त्यागी है; इसलिए उसके पहला अहिंसा अणुव्रत होता है। गृहस्थ स्नेह और मोहादिक
वश से गृहविनाश और ग्रामविनाश के कारण असत्य वचन से निवृत्त है इसलिए उसके दूसरा सत्याणुव्रत होता है। श्रावक राजा के भय आदि के कारण दूसरे को पीड़ाकारी जानकर बिना दी हुई वस्तु को लेना यद्यपि अवश्य छोड़ देता है तो भी बिना दी हुई वस्तु के लेने से उसकी प्रीति घट जाती है इसलिये उसके तीसरा अचौर्याणुव्रत होता है। गृहस्थ के स्वीकार की हुई या बिना स्वीकार की हुई परस्त्री का संगत्याग करने से रति घट जाती है इसलिए उसके परस्त्रीत्याग नाम का चौथा अणुव्रत होता है । तथा गृहस्थ धन, धान्य और क्षेत्र आदि का स्वेच्छा से परिमाण कर लेता है इसलिये उसके पाँचवाँ परिग्रहपरिमाण अणुव्रत होता है।
अणुव्रत के सहायक साथ शीलव्रत दिग्देशानर्थदण्डविरतिसामायिकप्रोषधोपवासोपभोगपपरिभोगपरिमाणातिथिसंविभागव्रतसंपन्नश्च । ( 21 )
(The house-holder) must be with (the following 7 Supplementary vows) also
1. दिग्व्रत To limit directions.
2. देशव्रत Limit Shorter.
3. अनर्थदण्ड व्रत Not to commit purposeless in.
4. सामायिक Contemplation of the self.
5. प्रोषधोपवास Fast.
6. उपभोग - परिभोग- परिमाण Limiting one's enjoyment of consuma -
ble and non consumable things.
7. अतिथिसंविभाग Feeding the ascetics with a part.
वह दिग्व्रत, देशव्रत, अनर्थदण्डव्रत, सामायिक व्रत, प्रोषधोपवासव्रत, उपभोग - परिभोग-परिमाण व्रत और अतिथिसंविभागव्रत इन व्रतों से भी सम्पन्न होता हैं।
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