Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
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3. अवधि दर्शनावरण Visual-obscuring 4. केवल दर्शनावरण. Perfect-conation obscuring
5. Sleep (6) Dee sleep (7) Drowsiness (8) Heavy-drowsiness and (9) Somnambu
lism. चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन, अवधिदर्शन और केवलदर्शन इन चारों के चार आवरण तथा निद्रा, निद्रानिद्रा, प्रचला, प्रचला-प्रचला और स्त्यानगृद्धि ये पाँच निद्रादिक ऐसे नौ दर्शनावरण हैं। (1) चक्षुदर्शनावरण - जिस कर्म के उदय से जीव चक्षु (आंख) से अवलोकन नहीं कर पाता है उसे चक्षुदर्शन कहते हैं। एकेन्द्रिय से लेकर त्रिइन्द्रिय तक के जीव के चक्षुदर्शनावरण कर्म के उदय होने के कारण इनकी चक्षु इन्द्रिय नहीं होती है। (2) अचक्षुदर्शनावरण - जिस कर्म के उदय से चक्षु को छोड़कर अन्य इन्द्रियों से अवलोकन नहीं होता है उसे अचक्षुदर्शनावरण कर्म कहते हैं। (3) अवधिदर्शनावरण - अवधि दर्शनावरण के उदय से आत्मा अवधिदर्शन से रहित हो जाता है। (4) केवलदर्शनावरण - केवलदर्शनावरण कर्म के उदय से केवलदर्शन का आविर्भाव (उत्पन्न) नहीं होता। वह जीव बहुत काल तक संसार में रहता
(5) निद्रा- मद, खेद और क्लम (थकावट) को दूर करने के लिए सोना निद्रा है। जिसके सन्निधान से आत्मा निद्रा लेता है, कुत्सित कार्य करता है, वा स्वप्न में क्रिया को करता है वह निद्रा है।
निद्रा कर्म और साता वेदनीय कर्म के उदय से निद्रा परिणाम की सिद्धि होती है। अर्थात् निद्रा दर्शनावरण और साता वेदनीय इन दोनों कर्मों के उदय
से निद्रा आती है। निद्रा के समय शोक, क्लम, श्रम आदि का विगम (नाश) . देखा जाता है अतः साता कर्म का उदय तो स्पष्ट ही है और असाता वेदनीय
का भी उस समय मन्द उदय रहता है, ऐसा जानना चाहिए।
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