Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
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(2) श्रुतज्ञानावरणीय - श्रुतज्ञान को ढकने वाले कर्म को श्रुतज्ञानावरणीय कहते हैं। इस कर्म के उदय से श्रुतज्ञान प्रगट नहीं होता है। इस कर्म के क्षयोपशम से श्रुतज्ञान प्रगट होता है। (3) अवधिज्ञानावरणीय - अवधिज्ञान को ढकने वाले कर्म को अवधिज्ञानावरणीय कहते हैं। इस कर्म के उदय से अवधिज्ञान प्रगट नहीं होता है। इस कर्म के क्षयोपशम से अवधिज्ञान प्रगट होता हैं। (4) मनःपर्ययज्ञानावरणीय - मनःपर्यय ज्ञान को ढकने वाले कर्म को मनः पर्यय ज्ञानावरणीय कहते हैं। इस कर्म के उदय से मन: पर्ययज्ञान प्रगट नहीं होता है। इस कर्म के क्षयोपशम से मनः पर्यय ज्ञान प्रगट होता है। (5) केवलज्ञानावरणीय-केवलज्ञान को ढकने वाले कर्म को केवलज्ञानावरणीय कहते हैं। इस कर्म के उदय से केवल ज्ञान प्रगट नहीं होता है। इस कर्म के क्षय से केवलज्ञान प्रगट होता है।
ज्ञान को ढकने वाला (आवृत्त करने वाला) ज्ञानावरणीय है और दर्शन को आवत करने वाला दर्शनावरणीय है। ये दोनों यथाक्रम ज्ञान-दर्शन को प्रगट होने नहीं देते हैं। परन्तु ये ज्ञान एवं दर्शन को विपरीत नहीं करता है इसलिए इन दोनों को आवरण कहा है। जैसे- सूर्य के आगे घनेबादल रहने से सूर्य छिप जाता है परन्तु न सूर्य नष्ट होता है और न ही किरणे विपरीत होती हैं। जब तक ज्ञान ज्ञानावरणीय कर्म का क्षय नहीं होता है तब तक केवलज्ञान नहीं होता है परन्तु सम्यग्दृष्टि का अल्पज्ञान भी सम्यग्ज्ञान होता है परन्तु मोहनीय (मिथ्यात्व) कर्म के उदय से विपुल ज्ञान भी सम्यग्ज्ञान नहीं होता हैं बल्कि विपरीत ज्ञान होता है।
दर्शनावरण कर्म के 9 भेद चक्षुरचक्षुरवधिकेवलानां निद्रानिद्रानिद्राप्रचलाप्रचलाप्रचलास्त्यानगृ
द्धयश्च । (7) दर्शनावरण Conation-obscuring is of 9 kinds according as it obscures
Ocular obscuring 2. अचक्षु दर्शनावरण Non - occular obscuring
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