Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
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1. दिग्व्रत :- दुष्परिहार क्षुद्र जन्तुओं से भरी हुई दिशाओं से निवृत्ति दिग्विरति है । जिनका परिहार ( बचाव ) आय है जैसे जन्तुओं से दिशाएँ व्याप्त हैं। अतः उन क्षुद्र जन्तुओं की रक्षा करने के लिए दशों दिशाओं में गमनागमन की निवृत्ति करनी चाहिए। उसका परिमाण प्रसिद्ध योजनादि के द्वारा करना चाहिए। उन दिशाओं का परिमाण पर्वत आदि प्रसिद्ध चिन्हों से तथा योजनादि की गिनती से कर लेना चाहिए ।
जो सम्पूर्ण रूप से हिंसादि की निवृत्ति करने में असमर्थ है, शक्ति के अनुसार प्राणी-वध-विरति के प्रति आदरशील है, उस श्रावक के यहाँ, प्राणयात्रा ( जीवन - निर्वाह) हो या न हो उनके, प्रयोजन होने पर भी वह स्वीकृत क्षेत्रमर्यादा को नहीं लाँघता अतः दिग्विरति में हिंसा की निवृत्ति होने से वह व्रती है।
2. देशव्रत :- जिस प्रकार दिग्व्रत है उसी प्रकार देशनिवृत्ति करना चाहिए। 'मैं मेरे इस घर और तालाब के मध्य भाग को छोड़कर देशान्तर में नहीं जाऊँगा । इस प्रकार देश विरति की निवृत्ति में दिग्विरति के समान प्रयोजन जानना चाहिए । दिग्विरति यावज्जीवन - सर्वकाल के लिए होती है और देशविरति यथाशक्ति नियत काल के लिए होता है, यही दिग्विरति व्रत और देशविरति व्रत में विशेषता
है।
3. अनर्थदण्डविरति व्रत :- उपकार न होकर जो प्रवृत्ति केवल पाप का कारण है वह अनर्थदण्ड है, इससे विरत होना अनर्थदण्ड विरति है । अनर्थदण्ड के 5 भेद हैं।
1. अपध्यान 2. पापोपदेश 3. प्रमादचर्या 4. हिंसा प्रदान 5. अशुभश्रुति
I.
अपध्यान - 'दूसरे की जय-पराजय, वध, बन्ध, अगच्छेद, धन-हरण आदि कैसे हो' इत्यादि मन के द्वारा चिन्तन करना अपध्यान है । II. क्लेशवाणिज्य, तिर्यग्वाणिज्य, वधकोपदेश और आरम्भोपदेश आदि पापोपदेश हैं।
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(A) क्लेश वाणिज्य - जैसे इस देश में दासी - दास सुलभ हैं, अमुक देश में ले जाकर विक्रय करने पर प्रचुर अर्थ - लाभ होता है ' इत्यादि पापसंयुक्त वचन बोलना' क्लेशवाणिज्य पापोपदेश है।
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