Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
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उनका ग्रहण इसमें क्यों नहीं किया ? उत्तर-दीक्षिता, अतिबाला तथा पशु आदि में मैट प्रवृत्ति करना कामतीव्राभिनिवेश
का फल है अत: कामतीव्राभिनिवेश के ग्रहण से इसकी सिद्धि हो जाती है। क्योंकि छोड़ने योग्य दीक्षित ; अतिवाला, तिर्यचिनी आदि में मैथुन
की वृत्ति कामतीव्राभिनिवेश से ही होती है। प्रश्न- इन अतिचार रूप कार्य करने में क्या दोष है ? उत्तर- इन कार्यों के करने से राजभय, लोकापवाद, पापकर्मों का आगमन - आदि अनेक दोष उत्पन्न होते हैं।
परिग्रहपरिमाणाणुव्रत के अतिचार क्षेत्रवास्तुहिरण्यसुवर्णधनधान्यदासीदासकुप्य भाण्डप्रमाणातिक्रमाः। (29) Transgressing the limit of fields, houses, silver, gold, cattle, corn, female and male servants, clothes. क्षेत्र और वस्तु के प्रमाण का अतिक्रम, हिरण्य और सुवर्ण के प्रमाण का अतिक्रम, धन और धान्य के प्रमाण का अतिक्रम, दास और दासी के प्रमाण का अतिक्रम तथा कुप्य और भाण्ड के प्रमाण का अतिक्रम ये परिग्रहपरिमाण अणुव्रत के पाँच अतिचार हैं। 1. क्षेत्र- चावल आदि धान्यों की उत्पत्ति का स्थान। 2. वास्तु- आगार, भवन, घर। 3. हिरण्य- चांदी आदि का व्यवहार। रजत के व्यवहार तन्त्र को हिरण्य कहते हैं अथवा सोने के सिक्के आदि को भी हिरण्य कहते हैं। 4. सुवर्ण- व्यवहार में आने वाला सोना प्रसिद्ध (ज्ञात) ही है। 5. धान्य- चावल, गेहूँ, मूंग, तिल आदि। 6.7. दासीदास-नौकर, स्त्री-पुरुष वर्ग। 8. कुप्य- कपास एवं कोसे आदि का वस्त्र और चन्दन आदि वस्तुएँ। 9. धन- गाय, बैल, अश्व आदि चतुष्पदिपशु समुह।
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