Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
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अध्याय 8
बन्धतत्त्व का वर्णन
BONDAGE OF KARMA बन्ध के कारण
मिथ्यादर्शनाविरतिप्रमादकषाययोगाबन्धहेतवः । ( 1 )
Wrong-belief, non abstinence, negligence, passions and activities are the cause of bondage.
मिथ्यादर्शन, अविरति, प्रमाद, कषाय, और योग ये बन्ध के हेतु है । सम्यग्दर्शन के विषयभूत सप्त तत्त्व में से पहले जीव- अजीव, आम्रव का वर्णन पहले अध्याय से लेकर सप्तम अध्याय तक किया गया है। क्रम प्राप्त बन्ध तत्त्व का वर्णन इस अध्याय में किया गया है। सप्तम अध्याय में वर्णित कर्म परमाणुओं का आस्रव के बाद जीव के साथ कर्म परमाणुओं का जो संश्लेष सम्बन्ध होता है उसे बंध कहते हैं। इसलिए बन्ध चेतन (जीव) और अचेतन ( अजीव, कर्मपरमाणु) द्रव्यों का परिणाम, परिणमन पर्याय या अवस्था विशेष है। मुख्यतः ये बन्ध दो प्रकार के हैं (1) भावबन्ध ( 2 ) द्रव्य बन्ध । भावबन्ध पूर्वक ही द्रव्य बंध होता है। इसलिए भावबन्ध का वर्णन इस सूत्र में किया है। वह भाव बन्ध नोकर्मबन्ध, कर्मबन्ध के भेद से दो प्रकार का है। माता- 1 - पिता-पुत्र आदि का स्नेह सम्बन्ध नो कर्म बन्ध है। जो कर्म बन्ध है वह कर्म अभव्य की अपेक्षा सन्तति परम्परा से अनादि अनंत है और भव्य की अपेक्षा अनादि सान्त है । भव्य की अपेक्षा भी जब तक भव्य मोक्ष नहीं जाता है तब तक उसकी कर्म बन्ध की परम्परा अनादि से है।
बंध प्रकरण में कर्मबन्ध का वर्णन नहीं करके बन्ध के हेतुओं का वर्णन पहले किया गया है क्योंकि कारण पूर्वक कार्य होता है। यदि बन्ध बिना हेतुओं से होता है तब मोक्ष भी कभी नहीं हो सकता है। इसलिये सर्व प्रथम उन्हीं तुओं का वर्णन किया जायेगा ।
बन्ध के कारण सामान्य रूप से उपयोग एवं योग है। यहाँ उपयोग का भाविक परिणमन है, जीव जब स्वस्वभाव को छोड़कर वैभाविक रूप में परिणमन
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