Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
View full book text
________________
मोह, अध्यवसाय) को निमित्त प्राप्त करके कर्म वर्गणाएँ जीव के प्रदेशों में संक्लेश रूप से बँध जाती हैं। इसको जैन दर्शन में कर्म बन्ध कहते हैं। सामान्य अपेक्षा से कर्म वर्गणाएँ एक होते हए भी जीव के विभिन्न प्रकार के योग-उपयोग को प्राप्त करके विभिन्न कर्म रूप में परिणमन कर लेती है। जैसे- मनुष्य के द्वारा भुक्त भोजन मनुष्य की विभिन्न पाचन क्रियाओं को प्राप्त करके रस, रुधिर, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा, वीर्य, ओज, रूप परिणमन कर लेता है, उसी प्रकार कर्म वर्गणाएँ भी ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, वेदनीय, मोहनीय, आयु, नामकर्म, गोत्र, अन्तराय आदि रूप में परिणित हो जाती है। जैसे एक प्रकार की भूमि में अंकुरित विभिन्न वृक्ष एक ही प्रकार के जल, वायु, सूर्य किरणों को प्राप्त करने पर भी विभिन्न वृक्ष में रसादि का परिणमन विभिन्न प्रकार होता है। नीम के वृक्ष को निमित्त पाकर कड़वा, गन्ने को प्राप्त होने पर मीठा, इमली में खट्टा, मिरची में चरपरा, आदि विभिन्न रस रूप परिणमन कर लेते हैं। 1. ज्ञानावरणी
वत्थस्स सेदभावो जह णासेदि मल विमेलणाच्छण्णो। अण्णाणं मलोच्छण्णं तह णाणं होदिणादव्वं ॥(65)
__(समयसार) As the whiteness of cloth is destroyed by its being covered with, diret, so let it be know that right knowledge is destroyed, when clouded by nescience.
मैल के विशेष सम्बन्ध से दबकर वस्त्र का श्वेतपना नष्ट हो जाता है वैसे ही जीव का मोक्ष का हेतुभूत ज्ञान गुण भी अज्ञानरूपी मल से (ज्ञानावरण कर्म से) दबकर नष्ट हो जाता है। . जैसे-दर्पण के ऊपर धूली लगने से दर्पण की स्वच्छता छिप जाती है या सूर्य के सन्मुख बादल आने पर सूर्य की रश्मि छिप जाती है। भगवान के सामने वस्त्र रहने पर भगवान का रूप ढक जाता है उसी प्रकार ज्ञानावरण कर्म जीव के ज्ञान गुण को ढक देता है।
477 www.jainelibrary.org
Jain Education International
For Personal & Private Use Only