Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
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शक्ति के सामर्थ्य विशेष को अनुभव/अनुभाग बन्ध कहते हैं। 4. प्रदेश बन्ध - कर्मरूप से परिणत पुद्गलस्कन्धों के परमाणुओं की गणना को प्रदेश बन्ध कहते हैं।
आचार्य नेमिचन्द्र सिद्धान्त चक्रवर्ती ने द्रव्यसंग्रह में इन बन्ध के हेतु का कथन किया है।
पयडिट्ठिदि अणुभागाप्पदेस भेदाद चदविधो बंधो।
जोगा पयडिपदेसा ठिदिअणुभागा कसायदो होति ॥(33) . स्थितिबन्ध और अनुभागबन्ध कषाय के कारण से होता हैं अर्थात् स्थितिबन्ध और अनुभाग बन्ध कषाय हेतुक हैं, ऐसा जानना चाहिए। इन कषायों के तारतम्य से स्थिति और अनुभाग में विचित्रता आती है, क्योंकि कारण के अनुरूप की कार्य होता हैं।
प्रकृति बन्ध का वर्णन-प्रकृति के मूल भेद आद्यो ज्ञानदर्शनावरण वेदनीयमोहनीयायुर्नामगोत्रान्तरायाः। (4) The main divisions of the nature of karmic matter are 8: 1. ज्ञानावरण Knowledge-obscuring. 2. दर्शनावरण Contain-obscuring. 3. वेदनीय Feeling-Karma. 4. मोहनीय
Deluding. 5. आयु Age. 6. नाम
Body- making. 7. गोत्र
Family- determining. 8. अन्तराय Obstructive.
पहला अर्थात् प्रकृति बन्ध ज्ञानावरण, दर्शनावरण, वेदनीय, मोहनीय, आयु, नाम, गोत्र और अन्तराय रूप हैं। (1) कर्मों के स्वभाव (प्रकृति-बन्ध)
जीव के परिस्पन्दन से आकर्षित होकर अनंतानंत पुद्गल परमाणुओं के समूह स्वरूप कार्माण वर्गणाएँ आकर जीव के आत्म-प्रदेश में प्रवेश करती हैं इसको जैन दार्शनिक शब्दावली में आम्रव कहते हैं। जीव के उपयोग (रागद्वेष,
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