Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
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जीव के रागादि भावों के निमित्त्य से नवीन पौद्गलिक द्रव्य कर्मों का पूर्व में जीव के साथ बंधे हुये पौद्गलिक द्रव्य कर्मों के साथ अपने यथायोग्य चिकने रूखे गुण रूप उपादान कारण से जो बन्ध होता है उसको पुद्गल बन्ध कहते हैं। वीतराग परम चैतन्य रूप निज आत्म तत्त्व की भावना से शून्य (रहित) जीव का जो रागादि भावों में परिणमन करना सो जीव बन्ध है। निर्विकार स्वसंवेदन ज्ञान रहित होने के कारण स्निग्ध-रूक्ष की जगह राग-द्वेष में परिणमन होते हये जीव का बन्ध योग्य स्निग्ध-रूक्ष परिणामों में परिणमन होने वाले पुद्गल के साथ जो परस्पर अवगाह रूप बन्ध है वह जीव पुद्गल का परस्पर बन्ध है। इस तरह तीन प्रकार बन्ध का लक्षण जानने योग्य हैं।
___बन्ध के संक्षिप्त कारण बताते हुए कुन्दकुन्द स्वामी पुन : कहते हैं "रत्तो बंधदि कम्मं" अर्थात् रागी जीव कर्म को बांधता है। .
सामान्यत: राग एक प्रकार होते हुए भी उसके अनेक भेद-प्रभेद हो जाते हैं। तब द्रव्यबन्ध में भेद-प्रभेद हो जाते हैं। यथा:
परिणामादो बंधो परिणामो रागदोस मोह जुदो।
असुहो मोहपदेशो सुहो व असुहो हवदि रागो॥(180) परिणाम से बन्ध होता है, वह परिणाम राग द्वेष मोह युक्त है। मोह और द्वेष अशुभ हैं राग शुभ अथवा अशुभ होता है।
- बन्ध के भेद प्रकृतिस्थित्यनुभवप्रदेशास्तद्विधयः। (3)
There are 4 kinds of that bondage according to 1. प्रकृति Nature of karmic matter 2. स्थिति Duration of the attachment of karmic matter to the
soul. 3. अनुभव The fruition being strong or mild also called अनुभाग
Anubhage. 4. प्रदेश The number of karma verganas or karmic molecules
which attach to the soul. उसके प्रकृति, स्थिति, अनुभव और प्रदेश ये चार भेद हैं।
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