Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
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है, अथवा द्वेष करता है, उनके द्वारा बन्ध रूप है।
पयडिटिदिअणुभागप्पदेस भेदादु चदुविधो बंधो। जोगा पयsि पदेसा ठिदिअणुभागा कषाय दो होंति । ( 33 )
द्र. संग्रह
प्रकृति, स्थिति, अनुभाग और प्रदेश इन भेदों से बन्ध चार प्रकार का हैं। इनमें योगों से प्रकृति तथा प्रदेश बन्ध होते हैं, और कषायों से स्थिति तथा अनुभाग बन्ध होते हैं ।
सपदेसो सो अप्पा तेसु पदेसेसु पविसंति जहाजोग्गं चिट्ठति हि
पुग्गला
जंति
वह आत्मा सप्रदेशी . है उन प्रदेशों में पुद्गल समूह प्रवेश करते हैं यथायोग्य रहते हैं, निकलते हैं और बन्धते हैं।
काया ।
बज्झंति ॥
(गा. 178 प्र . सा. )
मन, वचन, काय वर्गणा मे आलम्बन से और वीर्यान्तरायकर्म के क्षयोपशम से जो आत्मा के प्रदेशों में सकम्पना ( परिस्पन्दन) होता है उसको योग कहते हैं। उस योग के अनुसार, कर्म वर्गणा योग्य पुद्गल कर्म आस्रव रूप होकर अपनी स्थिति पर्यन्त ठहरते हैं तथा अपने उदय काल को पाकर फल देकर खिर जाते हैं। तथा केवल ज्ञानादि अनन्त चतुष्टय की प्रगटता रूप मोक्ष से प्रतिकुल बन्ध के कारण रागादिकों का निमित्त पाकर फिर भी द्रव्यबन्धरूप से बन्ध जाते हैं। इससे यह बताया गया है कि, रागादि परिणाम ही द्रव्य बन्ध का कारण है अथवा इस गाथा से दूसरा अर्थ यह कर सकते हैं कि " सविशन्ति" शब्द से प्रदेश बन्ध 'निष्ठन्ति' से स्थिति, बन्ध "जंति" से फल देकर जाते हुये अनुभाग बन्ध और " बद्ध्यन्ते " से प्रकृतिबन्ध ऐसे चार प्रकार बन्ध को समझना ।
फासेहिं
पुग्गलाणं बंधो जीवस्स रागमादिहिं । अण्णोणमवगाहो पुग्गल जीवप्पगो भणिदो | (177)
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स्पर्शों के साथ पुद्गलों का बंन्ध, रागादि के साथ जीव का बन्ध और अन्योन्य अवगाह पुद्गल जीवात्मक बन्ध कहा गया है।
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