Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
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पात्रं त्रिभेदयुक्तं संयोगो मोक्षकारणगुणानाम्। अविरतसम्यग्दृष्टिर्विरताविरतश्च सकलविरतश्च ॥(171)
पु.सि. सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र इनका जिनमें संयोग हो ऐसे, अविरतसम्यग्दृष्टि-चतुर्थगुणस्थानवर्ती, विरताविरत-देशविरत पंचमगुणस्थानवर्ती और सकलविरत-छठे गुणस्थानवर्ती मुनिराज इस प्रकार पात्र तीन प्रकार के कह गये हैं।
पृथ्वी, जल आदि विशेष से जैसे बीज के फल में विशेषता होती है वैसे ही विधिविशेष आदि से फल विशेष की प्राप्ति होती है। जैसे भूमि, बीज आदि कारणों में गुणवत्ता (विधिविशेषादि) होने से फल विशेष की प्राप्ति होती है अर्थात् अत्यधिक फलोत्पत्ति देखी जाती है। नाना प्रकार से बीजों की उत्पत्ति होना उसका विशेष है। उसी प्रकार विधिविशेष, दातृ विशेष, द्रव्यविशेष और पात्रविशेष से दान के फल में विशेषता आती है।
अभ्यास प्रश्न :1. व्रत की परिभाषा लिखें? 2. देशव्रत एवं महाव्रत किसे कहते हैं ? 3. व्रतों की स्थिरता के लिए क्या करना चाहिए? 4. अहिंसा व्रत की पाँच भावनायें क्या-क्या हैं ? 5. सत्य व्रत की भावनायें क्या-क्या हैं? 6. अचौर्य व्रत की स्थिरता के लिए कौन सी भावना करना चाहिए ? 7. ब्रह्मचर्य व्रत की पांच भावनायें क्या-क्या हैं? 8. परिग्रह त्याग की पांच भावनाये कौन-कौन सी हैं ? 9. पांचों पापों के बारे में क्या विचार करना चाहिए? 10. पांचों पाप दुःख स्वरूप क्यों हैं ? 11. विभिन्न जीवों के प्रति कैसी-कैसी भावना करनी चाहिए? 12. संसार और शरीर के स्वभाव का विचार क्यों करना चाहिए? 13. हिंसा की परिभाषा क्या है? 14. हिंसा एवं अहिंसा का विशेष वर्णन करो ?
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