Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
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10. भाण्ड- पीतल, सुवर्ण, स्टील, लोक इत्यादि निर्मित भाजन समूह
तीव्र लोभ के वशीभूत होकर इनकी मर्यादा का उल्लंघन करना प्रमाणातिक्रम है। 'मेरा इतना ही परिग्रह है, इससे अधिक नहीं' इस प्रकार मर्यादित क्षेत्र, वास्तु, हिरण्य, सुवर्ण आदि परिग्रह की अतिलोभ के कारण मर्यादा बढ़ा लेना, स्वीकृत मर्यादा का उल्लंघन करना प्रमाणतिक्रम है। ये परिग्रह परिमाण व्रत के पाँच अतिचार हैं।
दिग्व्रत के अतिचार ऊर्ध्वाधस्तिर्यग्व्यतिक्रमक्षेत्रवृद्धिस्मृत्यन्तराधानानि। (30) The partial Transgressions of the first qurga i.e. frontare: 1. उर्ध्वव्यतिक्रम Higher than your limit; 2. अध:व्यतिक्रम Lower than your limit; 3. तिर्दग्व्यतिक्रम Other 8 directions beyond your limit; 4. क्षेत्रवृद्धि
To increase the boundaries; 5. स्मृत्यन्तराधान Forgetting the limit in the vow. उर्ध्वव्यतिक्रम, अधोव्यतिक्रम, तिर्यग्व्यतिक्रम, क्षेत्रवृद्धि और स्मृत्यन्तराधान ये दिग्विरतिव्रत के पाँच अतिचार हैं। परिमित दिशाओं की अवधि (मर्यादा) का उल्लङ्घन करना अतिक्रम है। ऊर्ध्वातिक्रम, अधोऽतिक्रम और तिर्यग्व्यतिक्रम के भेद से अतिक्रम तीन प्रकार का है। ऊर्ध्वातिक्रम- मर्यादित पर्वत और सम भूमि आदि से ऊपर चढ़ना ऊर्ध्वातिक्रम
अधोऽतिक्रम-मर्यादित अधोभाग से अधिक कूपादि में नीचे उतरना अधोऽतिक्रम
तिर्यग्व्यतिक्रम- भूमि के बिल, गुफा आदि में प्रवेश करके मर्यादा की उल्लङ्घन करना तिर्यग्व्यतिक्रम अतिचार है। क्षेत्रवृद्धि-लोभकषाय के वशीभूत होकर स्वीकृत मर्यादा का परिमाण बढ़ा लेना क्षेत्रवृद्धि है। पूर्व दिशा में योजन आदि के द्वारा मर्यादा करके पुनः लोभ
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