Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
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नियत देश, काल में सामायिक व्रत में भी पूर्ववत् महाव्रत है। इतने क्षेत्र में, इतने काल तक अवधारित सामायिक में अवस्थित के महाव्रत होता है। ऐसा पूर्ववत् जानना चाहिए। सामायिक में अणु और स्थूल हिंसा आदि से निवृत्त होने के कारण महाव्रत समझना चाहिए।
संयमघाती कर्म का उदय होने से सामायिक व्रत में संयम का प्रसंग नहीं आता है। प्रश्न- सर्वसावधनिवृत्ति लक्षण सामायिक में स्थित व्यावृत के संयम प्राप्त होता
है अत: उसे संयत क्यों न माना जाए? उत्तर- यद्यपि सामायिक में सर्वसावधनिवृत्ति हो जाती है तथापि संयमघाती
चारित्रमोहनीय कर्म के उदय के कारण इसे संयत नहीं कह सकते। 6. उपभोग-परिभोग-परिमाण :- उपेत्य, भोगा जाता है वह उपभोग है। उपेत्य आत्मसात् करके भोगा जाता है, जो एक बार ही भोगे जाते हैं, ऐसे गन्ध, माला, भोजन, पान आदि उपभोग कहलाता है। - छोड़ करके पुन भोगा जाता है, वह परिभोग कहलाता है। जो एक बार भोगे जाकर भी दुबारा भोगे जा सकें वे परिभोग कहलाते हैं। आच्छादन (वस्त्र), प्रावरण, अलंकार, शय्या, घर, यान, वाहन आदि परिभोग हैं। उपभोग
और परिभोग, उपभोगपरिभोग कहलाते हैं तथा उपभोगपरिभोग का परिमाण उपभोगपरिभोगपरिमाण है। अर्थात् उपभोग और परिभोग सामग्री के भोगने की मर्यादा करना उपभोगपरिभोग परिणाम है।
- त्रसघात, बहुस्थावर घात कारक, प्रमाद कारक, अनिष्ट (शरीर को हानिकारण) और अनुपसेव्य के भेद से भोगपरिसंख्यान (भोगोपभोगपरिमाण व्रत) पाँच प्रकार है। त्रसघात की निवृत्ति के लिए मधु-मांस को हमेशा के लिए छोड़ देना चाहिए। प्रमाद का नाश करने के लिए हिताहित कार्याकार्य के विवेक को नष्ट करने वाली और मोह को करने वाली मदिरा का त्याग अवश्य करना चाहिए। केतकी के पुष्प, अर्जुन के पुष्प आदि बहुत जन्तुओं के उत्पत्ति स्थान हैं, तथा अदरख, मूली, गीली हल्दी, नीम के फूल आदि अनन्तकाय कहे जाने योग्य हैं (अर्थात् इनमें अनन्त साधारण निगोदिया जीव
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