Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
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प्रोषधोपवास है।
प्रोषधोपवास करने वाला श्रावक, स्नान, गंध, माला आदि से रहित होकर शुचि (पवित्र) स्थान में बैठे। निरारम्भी प्रोषधोपवास करने वाला श्रावक स्वशरीर के संस्कार के कारणभूत स्नान, गन्ध, माला, अलंकार आदि से रहित पवित्र स्थान में, साधु के निवास स्थान में, चैत्यालय में वा अपने प्रोषधोपवास घर में धर्मकथा - -श्रवण-श्रावण, चिन्तन और ध्यान आदि में अपना उपयोग ते हुए स्थित रहे
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व्रती को सल्लेखना धारण करने का उपदेश मारणान्तिक सल्लेखनां जोषिता । ( 22 )
(The house-holder is also) the observer in the last moment of his life, of the process of peaceful death which is characterised by non-attachment to the world and by a suppression of the passions. तथा वह मारणान्तिक सल्लेखना का प्रीतिपूर्वक सेवन करने वाला होता है।
स्वकीय परिणामों से गृहीत आयु, इन्द्रियां, बलादि प्राणों का कारण वश क्षय होने को मरण कहते हैं ।
अन्त का ग्रहण तद्भव मरण की प्रतिपत्ति के लिए है । मरण दो प्रकार का है- नित्य मरण और तद्भव मरण । प्रतिक्षण स्वकीय आयु की जो निवृत्ति होती है नाश होता है अर्थात् समय-समय में आयु के निषेक जो उदय में आकर नष्ट होते हैं वह नित्य मरण हैं । भवान्तर प्राप्ति के अनन्तर उपश्लिष्ट पूर्व पर्याय का नाश होना तद्भव मरण कहलाता है। इस सूत्र में अन्त शब्द का ग्रहण तद्भव मरण को ग्रहण करने के लिये है । मरण अन्तः मरणान्तः और मरणान्त जिसका प्रयोजन है - वह मारणान्तिक है।
सल्लेखना - अर्थात् भली प्रकार काय और कषाय को कृश करना । लिख धातु से 'णि' प्रत्यय करने से लेखना शब्द बनता है, उसका अर्थ तनूकरण यानी कृश करना है। बाह्य शरीर और आभ्यन्तर कषायों के कारणों को निवृत्ति पूर्वक क्रमश: भली प्रकार क्षीण करना सल्लेखना है । उस मारणान्तिक सल्लेखना
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