Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
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संयम के अनुसार उनको दूर भी करता है, फिर भी यदि निष्प्रतिकार अवस्था हो जाती है तो अपने संयम का नाश न हो, संयम आदि की रक्षा हो जाए, इसके लिए पूरा प्रयत्न करता है ; अतः व्रतादि की रक्षा के लिए किया गया प्रयत्न आत्मवध कैसे हो सकता है ?
सल्लेखनाधारी के जीवन और मरण दोनों में ही आसक्ति नहीं है। जिस प्रकार तपस्वी शीत उष्णजन्य सुख-दुःख को नहीं चाहता और यदि बिना चाहे सुख-दुःख आ जाते हैं तो वह रागद्वेष का अभाव होने से सुख दु:ख कृत कर्मों का बन्धक भी नहीं होता है - उसी प्रकार अर्हत्प्रणीत सल्लेखना को करने वाला व्रती जीवन और मरण दोनों के प्रति अनासक्त रहता है, परन्तु यदि मरण के कारण उपस्थित हो जाते हैं तो रागद्वेष आदि न होने से उसे आत्म वध का दोष नहीं लगता है।
सल्लेखना आत्मघात क्यों नहीं है ? मरणेऽवश्यं भाविनि कषाय सल्लेखनातनुकरणमात्रे। रागादिमंतरेण व्याप्रियमाणस्य नात्मघातोस्ति ॥177॥
मरण के नियम से उत्पन्न होने पर कषाय सल्लेखना के सूक्ष्म करने मात्र में राग-द्वेष के बिना व्यापार करने वाले सल्लेखना धारण करने वाले पुरुष के आत्मघात नहीं हैं।
आत्मघाती कौन है?
यो हि कषायाविष्टः कुम्भजलधूमकेतुविष शस्त्रेः। व्यपरोपयति प्राणान् तस्य स्यात् सत्यमात्मबधः।।178॥
निश्चय करके जो पुरुष कषाय से रंजित होता हुआ, कुम्भक, श्वांस रोकना, जल, अग्नि, विष और शस्त्रों के द्वारा प्राणों को नष्ट करता है उसके आत्मवध वास्तव में होता है।
सल्लेखना अहिंसा भाव है ? नीयतेऽत्र कषाया हिंसाया हेतवो यतस्तनुताम्। सल्लेखनामपि ततः प्राहुरहिंसा प्रसिद्धयर्थम् ॥197॥
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