Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
View full book text
________________
वेदनीय के आम्रव हैं। 5. शोक वेदनीय के आसव:- स्वयं शोकातुर होना, दूसरों के शोक को बढ़ाना तथा ऐसे मनुष्यों का अभिनन्दन करना शोक वेदनीय के आम्रव हैं। 6. भय वेदनीय के आस्रव:- भयरूप परिणाम और दूसरों को भय पैदा करना आदि भय वेदनीय के कारण हैं। 7. जुगुप्सा वेदनीय के आस्रवः- सुखकर क्रिया और सुखकर आचार से घृणा करना और अपवाद करने में रूचि रखना आदि जुगुप्सा वेदनीय के आम्रव
8. स्त्री वेदनीय के आम्रव:- असत्य बोलने की आदत, अतिसन्धानपरता (दूसरों का भेद खोलना), दूसरों के छिद्र ढूढ़ना और बढ़ा हुआ राग आदि
येऽत्रमायाविनो मा अतृप्ता: कामसेवने। विकारकारिणोऽङ्गादौ योषिद्वेषादिधारिणः ॥(96)
(श्री वीर वर्धमान चरित) मिथ्यादृशश्च रागान्धा निःशीला मूढ़ चेतसः।
नार्यो भवन्ति ते लोके मृत्वा स्त्रीवेदपाकतः॥
जो मनुष्य यहाँ पर मायावी होते हैं, काम सेक्न करने पर भी जिनकी तृप्ति नहीं होती शरीरादि में विकारी कार्य करते हैं, स्त्री आदि के वेष को धारण करते हैं, मिथ्यादृष्टि है, रागान्ध है, शील रहित हैं और मढ़ चित्त है, ऐसे मनुष्य मरकर स्त्री वेद के परिपाक से इस लोक में स्त्री होते हैं। अधिक श्रृंगार प्रिय होना (फैशन करना) स्व-पर श्रृंगार में रूचि रखना आदि कार्य सभी स्त्री वेदनीय के आम्रव हैं। पुरुष वेदनीय के आम्रव-क्रोध का अल्प होना, ईर्ष्या नहीं करना, अपनी स्त्री में संतोष करना आदि पुरुष वेदनीय के आस्रव हैं।
380
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org