Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
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निरवद्योपकरणपरित्यागो वधोऽङ्गिनाम् । दानभोगोपभोगादिप्रत्यूहकरणं तथा ॥ 57॥
ज्ञानस्य प्रतिषेधश्च धर्मविघ्नकृतिस्तथा । इत्येवमन्तरायस्य भवन्त्यास्रवहेतवः ।।58।।
तपस्वी, गुरू और प्रतिमाओं की पूजा न करने की प्रवृत्ति चलाना, अनाथ, दीन तथा कृपण मनुष्यों को भिक्षा आदि देने का निषेध करना, वध-बन्धन तथा अन्य प्रकार की रूकावटों के साथ पशुओं की नासिका आदि का छेद करना, देवताओं को चढ़ाये हुए नैवेद्य का प्रमाद से ग्रहण करना, निर्दोष उपकरणों का परित्याग करना (जिन पीछी या कमण्डल आदि उपकरणों में कोई खराबी नहीं आई है उन्हें छोडकर नये ग्रहण करना), जीवों का घात करना, दान - भोग-उपभोग आदि में विघ्न करना, ज्ञान का प्रतिषेध करना - स्वाध्याय या पठन-पाठन का निषेध करना, तथा धर्मकार्यों में विघ्न करना ये सब अन्तराय-कर्म के आस्त्रव के हेतु हैं।
अभ्यास प्रश्न :
1. कर्मास्रव किन - किन कारणों से होता है ?
2. शुभाम्रव किसे कहते हैं तथा पापास्रव किसे कहते हैं ?
3. साम्परायिक आस्रव किसे कहते हैं तथा ईर्यापथ आम्रव किसे कहतें हैं ?
4. साम्परायिक आस्रव किन-किन कारणों से होता है ?
5. आम्रव की विशेषता में क्या-क्या कारण है ?
6. जीवाधिकरण का वर्णन करो ?
7. ज्ञानावरण और दर्शनावरण आम्रव के कारण क्या है ?
8. असातावेदनीय का आस्रव क्यों होता है ?
9. साता वेदनीय के आस्रव का कारण क्या है
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(तत्त्वार्थसार पृ.123)
10. मिथ्यात्व कर्म का आस्रव क्यों होता है ? 11. विभिन्न चारित्र मोहनीय कर्म के आस्रव के कारण बताओ ? 12. जीव नरक - आयु का आस्रव क्यों करता है ?
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