Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
View full book text
________________
बाह्य परिग्रह में परिग्रहपना है या नहीं
यद्येवं भवति तदा परिग्रहो न खलु कोपि बहिरंगः।
भवति नितरां यतोसौ धत्ते मूर्छानिमित्तत्वं ॥(113)
यदि इस प्रकार है अर्थात् परिग्रह का लक्षण मूर्छा ही किया जाता है उस अवस्था में निश्चय से कोई भी बहिरंग परिग्रह, परिग्रह नहीं ठहरता है इस आशंका के उत्तर में आचार्य उत्तर देते हैं कि बाह्य परिग्रह भी परिग्रह कहलाता है क्योंकि यह बाह्यपरिग्रह सदा मूर्छा का निमित्तकारण होने से अर्थात् यह मेरा है ऐसा ममत्वपरिणाम बाह्यपरिग्रह में होता है इसलिये वह भी मूर्छा के निमित्तपने को धारण करता है।
परिग्रह में हिंसा हिंसापर्यायत्वातु सिद्धा हिंसातरंगसंगेषु। बहिरंगेषु तु नियतं प्रयातु मूर्छाव हिंसात्वं ॥(119)
अन्तरंगपरिग्रहों में हिंसा के पर्याय होने से हिंसा सिद्ध है बहिरंग परिग्रहों में तो नियम से मूर्छा ही हिंसापने को सिद्ध करती है। बाह्यपरिग्रह के त्याग का उपदेश
बहिरंगादपि संगाद्यस्मात्प्रवभत्यसंयमोऽनुचितः।
परिवर्जयेदशेषं तमचित्तं वा सचित्तं वा॥(127) जिस बाह्य परिग्रह से भी अनुचित असंयम उत्पन्न होता है उस अचित्त अथवा सचित्त समस्त परिग्रह को छोड़ देना चाहिये।
धन धान्यादि भी कम करने उचित हैं ..योपि न शक्तसत्यक्तुं धनधान्यमनुष्यवास्तुवित्तादि। - सोपि तनूकरणीयः निवृत्तिरूपं यतस्तत्त्वं ॥(128) - जो कोई भी धन, धान्य, मनुष्य, घर, द्रव्य आदि छोड़ने के लिये नहीं समर्थं है वह परिग्रह भी कम करना चाहिये क्योंकि तत्त्वस्वरूप निवृत्तिस्वरूप
431.
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org