Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
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अणुव्रती
सम्यक्ज्ञानी होय बहुरि दिढ़ चारित्र लीजै। एक देश अरु सकल देश, तसु भेद कहीजे॥ त्रस हिंसा को त्याग-वृथा थावर न संहारे। पर वधकार कठोर निन्द्य नहिं वयन उचारै॥(9) जल मृतिका बिन और नाहिं कछु गहै अदत्ता। निज वनिता बिन सकल नारि सो रहे विरत्ता॥ अपनी शक्ति विचार परिग्रह थोरो राखे।
महाव्रती षट्काय जीव न हनन तें, सब विध दरब हिंसा टरी। रागादिभाव निवारतें, हिंसा न भावित अवतरी॥ जिनके न लेष मृषा न जल मृण ह बिना दीयो गहै। अठदश सहस विध शील धर, चिद ब्रह्म में नित रमि रहें॥(1)
व्रतों की स्थिरता के कारण
तत्स्थैर्यार्थ भावना: पञ्च पञ्च। (3) For the fixing of these (5 vows in the mind, these are) 5 (kinds of) meditation (contmplation or observance.) उन व्रतों को स्थिर करने के लिए प्रत्येक व्रत की पाँच पाँच भावनाएँ हैं।
व्रत स्वीकार करने के बाद उसकी निर्मलता, स्थिरता एवं वृद्धि के लिए भावना करनी चाहिए। क्योंकि भावना में ऐसी आध्यात्मिक शक्ति होती है जिससे कष्ट साध्य कार्य भी सरलता से सहजता से हो जाते हैं। प्राचीन नीतिकारों ने भावना की शक्ति का अनुभव करके कहा भी है
“यादृशी भावना यस्य सिद्धिर्भवति तादृशी' । यह प्रसिद्ध नीति वाक्य अनेक रहस्य से भरा है। जिसकी भावना जिस प्रकार होती है उसकी कार्यसिद्धि भी तदनुकूल होती है। "As you think so you become' जैसा सोचेगे वैसा बनोगे।' खराब विचार करेगे तो खराब बनोगे
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