Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
View full book text
________________
विषयों में रागद्वेष का त्याग करना अर्थात् इष्ट विषयों में राग और अनिष्ट विषयों में द्वेष का त्याग करना आकिंचन्य (परिग्रहत्याग) व्रत की पाँच भावनाएँ हैं। हिंसादि पाँच पापों के विषय में करने योग्य विचार
हिंसादिष्विहामुत्रापायावद्यदर्शनम्। (७) The destructive or dangerous (and) censurable (character of the 5 faults) injury, etc., in this (as also) in the next world (ought to be) meditated upon. हिंसादिक पाँच दोषों में ऐहिक और पारलौकिक अपाय और अवध का दर्शन भावने योग्य है। अभ्युदय और निःश्रेयस् के साधनों का नाशक अपाय है, या भय का नाम अपाय है। अभ्युदय .(स्वर्गादि इहलोकिक सम्पदा) और निःश्रेयस (मोक्ष) की क्रिया एवं साधनों के नाशक अनर्थ को अपाय कहते हैं। अथवा इहलोक भय, परलोकभय, मरणभय, वेदना भय, अगुप्तिभय, अनरक्षकभय, अकस्मात् भय इन सात प्रकार के भय को अपाय कहते हैं।
गर्दा निन्दनीय को अवद्य कहते हैं। ऐसा चितवन करना चाहिए कि हिंसक नित्य अद्विग्न रहता है, सतत् अनुबद्ध वैर वाला होता है। इस लोक में वध-(मारण) बन्धन, क्लेश आदि को प्राप्त करता है और मरकर परलोक में अशुभ गति में जाता है और लोक में भी निन्दनीय होता है। अत: हिंसा से विरक्त होना ही कल्याणकारी है। मिथ्याभाषी का कोई विश्वास नहीं करता है। असत्यवादी इस लोक में जिह्वाच्छेद आदि के दंड को भोगता है। जिसके सम्बन्ध में झूठ बोलता है, वे उसके वैरी हो जाते हैं अत: उनसे भी अनेक आपत्तियाँ आती हैं। मरकर अशुभगति में जाता है और निन्दनीय भी होता है। अत: असत्य बोलने से विरक्त होना कल्याणकारी है। परधन के ग्रहण करने में आसक्तचित्त वाला चोर सर्वजतों के द्वारा तिरस्कृत होता है, निरन्तर भयभीत रहता है। इस लोक में अभिघात (मारपीट), वध, बन्धन, हाथ, पैर, कान, नाक ओष्ठ आदि का छेदन-भेदन और सर्वस्वहरण आदि दण्ड भोगता है (प्राप्त करता है) और मरकर परलोक में अशुभगति में जाता है, अत: चोरी
411 www.jainelibrary.org
Jain Education International
For Personal & Private Use Only