Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
View full book text
________________
करना संघ का अवर्णवाद है। जिन देव के द्वारा उपदिष्ट धर्म में कोई सार नहीं जो इसका सेवन करते हैं वे असुर होंगे इस प्रकार कथन करना धर्म का अवर्णवाद है। देव सुरा और मांस आदि का सेवन करते हैं इस प्रकार का कथन देवों का अवर्णवाद है।
चारित्र मोहनीय का आस्रव
कषायोदयात्तीव्रपरिणामश्चारित्र मोहस्य। (14) The inflow of af Ata fit right-conduct-deluding-karmic matter is caused by the intense thought activity prodused by the rise of the passions and of the quesi-passions no-kasaya. कषाय के उदय से होने वाला तीव्र आत्मपरिणाम चारित्र मोहनीय के आस्रव के कारण है।
कषायों के उदय से जो आत्मा का तीव्र परिणाम होता है वह चारित्र मोहनीय का आस्रव जानना चाहिए।
कषायवेदनीय के आसव-स्वयं कषाय करना, दूसरों में कषाय उत्पन्न करना, तपस्वीजनों के चारित्र में दूषण लगाना, संक्लेश को पैदा करने वाले लिंग (वेष) और व्रत को धारण करना, धर्म का विध्वंस करना, किसी को शीलगुण, देशसंयम और सकलसंयम से च्युत करना, मद्य-मांस आदि से विरक्त जीवों को उनसे बिचकाना धार्मिक कार्यों में अन्तराय करना, आदि क्रियाएँ एवं भाव, कषाय वेदनीय के आस्रव के कारण। (2) हास्य वेदनीय के आसव- सत्य धर्म का उपहास करना, दीन मनुष्य की दिल्लगी उड़ाना, कुत्सित राग को बढ़ाने वाला हँसी मजाक करना, बहुत बकने और हँसने की आदत रखना आदि हास्य वेदनीय के आस्रव हैं। 3. रति वेदनीय के आसव- नाना प्रकार की क्रीड़ाओं में लगे रहना, व्रत
और शील के पालन में रूचि न रखना, आदि रति वेदनीय के आस्रव हैं। 4. अरति वेदनीय के आसव- दसरों में अरति उत्पन्न हो और रति का विनाश हो ऐसी प्रवृत्ति करना और पापी लोगों की संगति करना आदि अरति
379 www.jainelibrary.org
Jain Education International
For Personal & Private Use Only