Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
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तिर्यंच आयु का आस्रव
माया तैर्यग्योनस्य। (16) The inflow of fertel Sub-human-age-karma is caused by HRT deceit माया तिर्यंचायु का आस्रव है। चारित्रमोह के उदय से कुटिल भाव होता है, वह माया है। चारित्र मोह कर्म के उदय से उत्पन्न जो आत्मा का कुटिल स्वभाव है, वह माया कहलाती है। संक्षेपत: वह माया निकृति तिर्यञ्च आयु के आस्रव का कारण है। विस्तार के मिथ्यात्वयुक्त अधर्म का उपदेश, बहु आरम्भ, बहु परिग्रह, अतिपंचना (अत्यन्त मायाचार), कूटकर्म, पृथ्वी की रेखा के समान रोष, नि:शीलता, शब्द और संकेत आदि से परवंचना का षड्यंत्र, छल-प्रपञ्चकी रूचि, परस्पर फूट डालना, अनर्थोभ्दावन, वर्ण, रस, गन्ध आदि को विकृत करने की अभिरुचि, जातिकुलशीलसंदूषण, विसंवाद में रूचि, मिथ्याजीवित्व, किसी के सद्गुणों का लोप, असद्गुणख्यापन, नील एवं कापोत लेश्या के परिणाम, आर्तध्यान और मरणकाल में आर्तरौद्रपरिणाम इत्यादि तिर्यंच आयु के आस्रव के कारण
तत्वार्थसार में भी कहा है: नैःशील्यं निर्वतत्वं च मिथ्यात्वं परवञ्चनम्। मिथ्यात्वसमवेतानामधर्माणां देशनम् ॥(35) कृत्रिमागुरुकर्पूरकुडमोत्पादनं
तथा। तथा मानतुंलादीनां कूटादीनां प्रवर्तनम् ॥(36) सुवर्णमौक्तिकादीनां प्रतिरूपकनिर्मितिः। वर्णगन्धरसादीनामन्यथापादनं
तथा॥(37) . तक्रक्षीरघृतादीनामन्यद्रव्यविमिश्रणम्। वाचान्यदुत्काकरणमन्यस्य क्रियया तथा॥(38) कापोतनीललेश्यात्वमार्तध्यानं च दारूणम्। तैर्यग्योनायुषो ज्ञेया माया चानवहेतवः ॥(39)
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