Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
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व्यन्तरादि में उत्पन्न होते हैं।
सम्यक्त्वं च । (21) Right belief is also the cause of celestial age karmas, but only of the heavely order.
सम्यकत्व भी देवायु का आस्रव है। विशेष कथन न होने पर भी पृथक् सूत्र होने से सौधर्मादि विशेष गति जाननी चाहिये। सम्यक्त्व देवायु के आस्रव का कारण है, ऐसा सामान्य कथन होने पर भी सम्यग्दर्शन, सौधर्मादि कल्पवासी देव सम्बन्धी आयु के आस्रव का कारण है, यह समझना चाहिए। क्योंकि पृथक् सूत्र से यह ज्ञात होता है। यदि सामान्य रूप से सम्यग्दर्शन देव आयु के आस्रव का कारण इष्ट होता तो पृथक् सूत्र की रचना व्यर्थ होती। क्योंकि पूर्व सूत्र में ही देवायु के आस्रव के कारण कहे हैं।
सम्यक्त्व के साथ नियम है कि सम्यग्दृष्टि सौधर्मादि विमानवासी देवों की आयु का ही बंध करता है, अन्य आयु का नहीं, उसी प्रकार सरागसंयम
और संयम का भी नियम है कि वे भी स्वर्गों की आयु का बन्ध करते हैं। क्योंकि सम्यग्दर्शन के बिना सरागसंयम और संयमासंयम की उत्पत्ति नहीं है अर्थात् सम्यक्त्व के अभाव में सरागसंयम और संयमासंयम नहीं हो सकते।
अशुभ नामकर्म का आस्रव
योगवक्रता विसंवादनं चाशुभस्य नाम्नः। (22) The inflow of 379794914 bad body-making karma is caused by a non-straight forward or deceitful working of the mind, body or specch or by विसवाद Wrangling, etc. wrong-belief, cnvy, back-biting, scIf-praise, censuring and others etc.
योग वक्रता और विसंवाद ये अशुभ नाम कर्म के आस्रव हैं। मन में कुछ सोचना, वचन से कुछ दूसरे प्रकार से कहना और काय से भिन्न रूप से ही प्रवृत्ति करना योगवक्रता है। मन, वचन और काय का व्याख्यान पहले किया जा चुका है, उनकी कुटिलता योगवक्रता कहलाती है। अनार्जव
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