Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan

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Page 406
________________ ( 7 ) शक्तितस्तप: The practice of austerities according to one's capacity. ( 8 ) साधुसमाधि Protecting and reassuring the saints or removing their troubles. (9) वैयावृत्यकरण Serving the meritorious. ( 10 ) अर्हद्भक्ति Devotion to arhats or Ommiscient Lords. ( 11 ) आचार्यभक्ति Devotion to Acharyas or heads of the orders of saints. (12) बहुश्रुतभक्ति Devotion to Upadhyayas or teaching saints. (13) प्रवचनभक्ति Devotion to scriptures. (14) आवश्यकापरिहाणि Not neglecting one's 6 important daily duties. (15) मार्गप्रभावना Propagation of the Liberation. ( 16 ) प्रवचनवत्सलत्व Temder affection for one's brothers the path of liberation. दर्शनविशुद्धि, विनय संपन्नता, शील और व्रतों का अतिचार रहित पालन करना, ज्ञान में सतत् उपयोग, सतत् संवेग, शक्ति के अनुसार त्याग, शक्ति के अनुसार तप, साधु-समाधि, वैयावृत्य करना, अरिहंत भक्ति, आचार्य भक्ति, बहुश्रुत भक्ति, प्रवचन भक्ति, आवश्यक क्रियाओं को न छोड़ना, मोक्षमार्ग की प्रभावना और प्रवचन वात्सल्य ये तीर्थंकर नामकर्म के आस्रव हैं। (1 ) दर्शनविशुद्धि - जिनोपदिष्ट निर्ग्रन्थ मोक्षमार्ग में निशङ्कितादि आठ गुण सहित रूचि करना दर्शनविशुद्धि है। जिनेन्द्र भगवान अर्हत् परमेष्ठी के द्वारा प्रतिपादित निर्ग्रन्थलक्षण मोक्षमार्ग में रूचि होना दर्शनविशुद्धि है। इस दर्शनविशुद्धि 1. निशंकितत्व, 2. नि: काङ्क्षता, 3. निर्विचिकित्सा, 4. अमूढदृष्टिता, 5. उपवृहण वा उपगूहन, 6. स्थितिकरण, 7. वात्सलता, और 8 प्रभावना ये आठ अङ्ग हैं। (1) निशंकितत्व :- इहलोकभय, परलोकभय, व्याधिभय, मरणभय, अगुप्तिभय, अरक्षणभय और आकस्मिकभय इन सात भयों से मुक्त रहना अर्थात् मरण आदि से भयभीत नहीं होना अथवा जिनेन्द्र भगवान कथित तत्त्व में 'यह है या नहीं' इस प्रकार की शंका नहीं करना निःशङ्कित है। Jain Education International For Personal & Private Use Only 391 www.jainelibrary.org

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