Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
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बिना होने वाला मार्दव स्वाभाविक मृदुता है। जो जीव स्वाभाविक मृदुता से सहित होते हैं वे भी मनुष्य आयु का आस्रव करते हैं। 17 वें सूत्र में मनुष्य आयु के आस्रव का कारण बताने के बाद भी इस सूत्र में अलग से मनुष्य आयु के आस्रव का वर्णन इसलिये किया गया कि स्वाभाविक सरलता से मनुष्य आयु का आस्रव जैसे होता है वैसे ही देव आयु का आस्रव का भी कारण बनता है।
सब आयुओं का आस्रव
निःशील व्रतत्वं च सर्वेषाम्। (19). Vowlessness and sub vowlessness with slight wordly activity and slight attachment, is cause of inflow of all kinds of age-karmas शीलरहित और व्रत रहित होना सब आयुओं का आस्रव है। सूत्र में जो 'च' शब्द है वह अधिकार प्राप्त आम्रवों के समुच्चय करने के लिए है। इससे यह अर्थ निकलता है कि अल्प आरम्भ और अल्प परिग्रहरूप भाव तथा शील और व्रतरहित होना सब आयुओं के आस्रव हैं।
दिग्वत आदि सात शील और अहिंसादि पाँच व्रतों के अभाव से भी यदि कषाय मंद है और लेश्यायें शुभ हैं तब देव और मनुष्य आदि शुभ आयु का आस्रव होता है। और जब कषाय तीव्र है और लेश्यायें अशुभ रहती हैं तब तिर्यंच और नरक आदि अशुभ आयु का आस्रव होता है। इसलिए इस सूत्र में कहा है कि शीलरहितता एवं व्रतरहितता से सम्पूर्ण आयु का आम्रव होता है।
देव आयु का आस्रव सरागसंयमसंयमासंयमाकामनिर्जरा बालतपांसि दैवस्य । (20) The inflow of Cary Celestial age karma is caused by
Selfcontrol with slight attachment found in monks only.
Restraint of vows of some but not of other passions found in laymen only.
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