Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
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7. बालतप Austerities not based upon right knowledge. 8. योग Contemplation. 9. क्षान्ति Forgiveness and 10. शौच Contentiment. These are the cause of inflow of pleasure bearing fecling karmic matter, सातावेदनीय। भूतअनुकम्पा, व्रतअनुकम्पा, दान और सरागसंयम आदि का योग तथा क्षान्ति और शौच ये सातावेदनीय के आस्रव हैं। भूत- आयुकर्म के उदयविशेष से होने वाले भूत कहलाते हैं। आयुकर्म के उदय से उन-उन योनियों में होने वाले प्राणियों को भूत कहते हैं अर्थात् सर्वप्राणी भूत कहलाते हैं। व्रती- अहिंसादि व्रतों को धारण करने वाले व्रती कहलाते हैं। वे व्रती दो प्रकार के हैं- श्रावक और मुनि। आगार (घर) के प्रति अनुत्सुक संयतीजन अनगार है और संयतासंयत गृहस्थ एकदेश व्रती है। अनुकम्पा- अनुकम्पन को अनुकम्पा कहते हैं। दया व्यक्ति का हृदय दूसरे की पीड़ा को अपनी पीड़ा समझकर काँप जाता है, वह अनुकम्पा है। भूत (प्राणी) और दोनों प्रकार के व्रतियों में अनुकम्पा भूतव्रत्यनुकम्पा है। दान- पर की अनुग्रह बुद्धि से अपनी वस्तु का त्याग करना दान है। आत्मीय धन आदि वस्तु का दूसरों का उपकार करने की बुद्धि से त्याग करना दान कहा जाता है। सराग- कषायों को निवारण करने में तत्पर अक्षीणकषायी सराग कहलाता है। पूर्वोपार्जित कर्म के उदय से जिसकी कषायें शांत नहीं हुई है परन्तु जो कषायों का निवारण (शांत) करने के लिए तैयार है, वह सराग कहलाता है। सरागसंयम- प्राणियों और इन्द्रियों में अशुभ प्रवृत्ति की विरति का नाम संयम है। एकेन्द्रिय, दो इन्द्रिय आदि प्राणियों में और चक्षु आदि पंचेन्द्रियों के विषयों में अशुभ प्रवृत्ति का त्याग करना वा अशुभ प्रवृत्ति से निवृत्त होना संयम है। अर्थात् प्राणियों की रक्षा करना और इन्द्रियों की विषय- प्रवृत्ति को रोकना
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