Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
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निर्वर्तना दो प्रकार की है। निक्षेप चार प्रकारका है। संयोग दो प्रकारका है । निसर्ग तीन प्रकारका है। ये सब अजीवाधिकरण के भेद हैं।
मूल और उत्तर गुण के भेद से निर्वर्तना लक्षण अजीवाधिकरण दो प्रकार का है - मूलगुण निर्वर्तनाधिकरण और उत्तरगुण निर्वर्तनाधिकरण । पाँच प्रकार के शरीर, वचन, मन और श्वासोच्छ्वास ये मूलगुण निर्वर्तना है और काष्ठ, पुस्त, चित्रकर्मादि उत्तरगुणनिर्वर्तना है । अर्थात पाँच प्रकार के शरीर, मन, वचन, . काय और श्वासोच्छ्वास इनकी रचना करना मूलगुण निर्वर्तना है और काष्ठ, पाषाण, वस्त्र आदि के चित्राम बनाना, जीव के खिलौने बनाना, लिखना आदि उत्तरगुणनिर्वर्तना है ।
किसी वस्तु के रखने को निक्षेप कहते हैं। इसके चार भेद हैं- अप्रत्यवेक्षित निक्षेपाधिकरण, दुष्प्रमृष्ट निक्षेपाधिकरण, सहसा निक्षेपाधिकरण और अनाभोग निक्षेपाधिकरण । (1) बिना देखे हुए किसी वस्तु को रख देना अप्रत्यवेक्षिप निक्षेपाधिकरण है। (2) ठीक तरह से न शोधी हुई भूमि पर किसी वस्तु को रखना दुःप्रमृष्ट निक्षेपाधिकरण है। (3) शीघ्रतापूर्वक किसी वस्तु को रखना सहसा निक्षेपाधिकरण है। (4) किसी वस्तु को बिना देखे अयोग्य स्थान में चाहे जहाँ रखना अनाभोग निक्षेपाधिकरण है।
भक्तपान और उपकरण के भेद से संयोग दो प्रकार का है। मिलाने का नाम संयोग है, वह संयोग दो प्रकारका है । भक्तपान संयोगाधिकरण और उपकरण संयोगाधिकरण। (1) किसी अन्नपान को दूसरे अन्नपान में मिलाना भक्तपान संयोगाधिकरण है। (2) कमण्डलु, पुस्तक आदि उपकरणों को दूसरे उपकरणों के साथ मिलाना उपकरण संयोगाधिकरण है।
प्रवृत्ति करने को निसर्ग कहते हैं । कायादि के भेद से निसर्ग तीन प्रकार का है- कायनिसर्गाधिकरण, वा निसर्गाधिकरण और मनोनिसर्गाधिकरण |
काय की स्वेच्छानुसार प्रवृत्ति करना कायनिसर्ग है । वचन की इच्छानुसार प्रवृत्ति करना वाङ्निसर्गाधिकरण है और स्वेच्छानुसार मानसिक प्रवृत्ति मनोनिसर्गाधिकरण है ।
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