Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
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क्रिया है। (18) विदारण - दूसरे ने जो सावद्यकार्य किया हो उसे प्रकाशित करना विदारण क्रिया है। (19) आज्ञा व्यापादिकी - चारित्रमोहनीय के उदयसे आवश्यक आदि के विषय में शास्त्रोक्त आज्ञाको न पाल सकने के कारण अन्यथा निरूपण करना आज्ञाव्यापादिकी क्रिया है। (20) अनाकांक्षक्रिया - धूर्तता और आलस्य के कारण शास्त्र में उपदेशी गयी विधि करने का अनादर अनाकांक्ष क्रिया है। (21) प्रारम्भ - छेदना, भेदना और रचना आदि क्रिया में स्वयं तत्पर रहना
और दूसरे के करने पर हर्षित होना प्रारम्भ क्रिया है। (22) पारिग्राहिकी - परिग्रह का नाश न हो इसलिए जो क्रिया की जाती है वह पारिग्राहिकी क्रिया है। (23) माया - ज्ञान, दर्शन आदि के विषय में छल करना मायाक्रिया है। (24) मिथ्यादर्शन - मिथ्यादर्शन के साधनों से युक्त पुरूष की प्रशंसा आदि के द्वारा दृढ़ करना कि 'तू ठीक करता है' मिथ्यादर्शन क्रिया है। (25) अप्रत्याख्यान - संयम का घात करनेवाले कर्म के उदय से त्यागरूप परिणामों का न होना अप्रत्याख्यान क्रिया है।
ये सब मिलकर पच्चीस क्रियाएँ होती है। कार्य-कारण के भेद से अलग-अगल भेद को प्राप्त होकर ये इन्द्रियादिक साम्परायिक कर्म के आस्रव के द्वार हैं।..
आस्रव की विशेषता में कारण तीव्रमन्दज्ञाताज्ञातभावाधिकरणवीर्यविशेषेभ्यस्तविशेषः। (6) The differences in flow in different souls caused by the same activity arise from differences in the following: 1. तीव्रभाव Intensity of desire or thought-activity.
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