Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
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1. संरम्भ Determination to do a thing.
2. HHRH Preparation for it i.e. collecting materials for it.
3. आरम्भ Commencement of it.
These three can be done by the three yogas i.e. activity of mind, body and speech, thus there are 3 x 3 = 9 kinds. Each one of the 9 kinds can be done in three ways i.e. by doing oneself or having it done by others or by approval or acquiescence. Thus we get 27 kinds. Each one of the 27 may be due to the 4 possions. That gives us 27 x 4 = 108 kinds.
पहला जीवाधिकरण संरम्भ, समारम्भ और आरम्भ के भेद से 3 प्रकार का योगों के भेद से तीन प्रकार का कृत, कारित और अनुमत के भेद से तीन प्रकार का तथा कषायों के भेद से चार प्रकार का होता हुआ परस्पर मिलाने से 108 प्रकार का है।
इस सूत्र में जीव के निमित्त से होने वाले आम्रव के भेद का वर्णन किया गया है। उस आस्रव के भेद 108 प्रकार के हैं। 108 प्रकार के आम्रव के प्रायश्चित स्वरूप या उसको दूर करने के लिए माला में 108 मणियाँ होती हैं। संरम्भ आदि का वर्णन निम्न प्रकार है :
(1) संरम्भ प्रयत्न विशेष को संरम्भ कहते हैं। प्रमादी पुरूष का प्राणघात आदि के लिए प्रयत्न करने का संकल्प संरम्भ है।
(2) समारम्भ - हिंसादि साधनों को एकत्र करना समारम्भ है । साध्य क्रिया के साधनों को इकट्ठा करना समारम्भ है।
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(3) आरम्भ तत्त्व का कथन करने से सर्व ही ( ये तीनों शब्द ) भाव साधन हैं । अर्थात् संरम्भण संरम्भ, समारम्भण समारम्भ और आरम्भण आरम्भ हैं।
'कायवाङ्मनस्कर्मयोगः' इस सूत्र में
( 4 से 6 ) मन, वचन, काय योग योग शब्द का व्याख्यान कर चुके हैं।
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(7) कृत - कृत वचन स्वातंत्र्य प्रतिपत्ति के लिए है। स्वतंत्ररूप से जो आत्मा
द्वारा किया जाता है, वह कृत है।
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