Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
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(4) अज्ञात भाव - मद या प्रमाद से गमनादि क्रियाओं में बिना जाने प्रवृत्ति करना अज्ञात भाव है। जैसे - सुरापान करने वाले की इन्द्रियाँ विकल हो जाती है, उसी प्रकार इन्द्रियों को मोहित करने वाले परिणाम मद कहलाते हैं। उस मद से तथा कुशल (आत्महितकारक) क्रियाओं के प्रति अनादर भाव रूप प्रमाद के कारण गमनादि क्रियाओं में बिना जाने प्रवृत्ति करना अज्ञात भाव कहलाता है। (5) अधिकरण भाव - जिसमें पदार्थ अधिकृत किये जाते हैं वह अधिकरण है। आत्मा के प्रयोजन को अर्थ कहते हैं। जहाँ-जहाँ जिसमें प्रयोजन सिद्ध किये जाते हैं, प्रस्तुत किये जाते हैं वह अधिकरण है, द्रव्य है। अर्थात् क्रिया का आधारभूत द्रव्य अधिकरण है। (6) वीर्य भाव - द्रव्य का स्वसामर्थ्य वीर्य है। द्रव्य की शक्ति विशेष वा सामर्थ्य विशेष को वीर्य कहते हैं।
अधिकरण के भेद
अधिकरणं जीवाजीवाः।।(7) The Dependence relates to the souls and the non-souls.
. अधिकरण जीव और अजीवरूप है। जीव और अजीव ये जो आस्त्रव के अधिकरण और आधार हैं। यद्यपि सम्पूर्ण आस्त्रव जीव के ही होता है तथापि आस्त्रव के निमित्त जीव और अजीव दोनों के होते हैं। क्योंकि हिंसा आदि के उपकरण रूप से जीव और अजीव ही अधिकरण होते हैं। ये दोनों अधिकरण दस प्रकार के हैं- विष, लवण, क्षार, कटुक, अम्ल, स्नेह, अग्नि और खोटे रूप से प्रयुक्त मन-वचन और
काय।
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___ जीवाधिकरण के भेद
आद्यं संरम्भसमारम्भारम्भयोगकृतकारिता- नुमतकषायविशेषैस्त्रिस्त्रिस्त्रिश्चतुश्चैकशः। (8) . The first जीवाधिकरण i.e. dependence on the souls in of 108 kinds
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