Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
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2. मन्दभाव Mildness.
3. ज्ञातभाव Intentional character of the act. 4.375116THTA Unintentional character of the act. 5. अधिकरण Dependence. 6. वीर्य One's own position and power to do the act. तीव्रभाव मन्दभाव, ज्ञातभाव, अज्ञातभाव, अधिकरण और वीर्य विशेष के भेद से आस्रव की विशेषता होती है।
योग प्रत्येक संसारी जीव के होता है। योग होने पर भी सम्पूर्ण जीवों के आस्रव समान नहीं होता है। क्योंकि जीवों के परिणामों के अनन्त भेद हैं। कुन्दकुन्द देव ने कहा भी है
“णाणाजीव णाणाकम्म णाणाविह हवे लद्धि" .. अर्थात् संसार में अनेक जीव (अनंत) हैं उनके कर्म (अनंत कर्म) हैं। इसलिए उनकी लब्धियाँ भी नाना (अनंत) प्रकार की हैं। इसलिए उनके योग, उपयोग विभिन्न प्रकार के होते हैं। उसके अनुसार कर्म और बंध भी अनेक प्रकार के होते हैं। (1) तीव्र भाव - अति प्रवृद्ध क्रोध, मान, माया और लोभादि के कारण परिणामों की तीव्रता को तीव्र कहते हैं वा बाह्य और आभ्यन्तर कारणों से कषायों की उदीरणा होने पर अत्यन्त संक्लिष्ट भाव होते हैं, अत्यन्त उग्र परिणाम होते हैं, उन परिणामों को तीव्र कहते हैं। (2) मन्द भाव - तीव्र से विपरीत परिणाम मन्द होते हैं। बाह्य आभ्यन्तर कारणों से कषायों की अनुदीरणा के कारण से उत्पद्यमान अनुद्रिक परिणाम मन्द होने से मन्द कहलाते हैं। अर्थात् कषायों की उदीरणा में परिणाम तीव्र होते हैं और कषाय की अनुदीरणा में परिणाम मन्द होते हैं। (3) ज्ञात भाव - ज्ञात मात्र वा जानकर के प्रवृत्ति करना ज्ञात भाव है। मारने के परिणाम न होने पर भी हिंसा हो जाने पर 'मैने मारा' यह जान लेना ज्ञात है। अथवा 'यह प्राणी मारने योग्य हैं' ऐसा जानकर प्रवृत्ति करना ज्ञात भाव है।
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