Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
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गोम्मट्टसार जीवकाण्ड में जीवों के विभिन्न भेद प्रभेदों का वर्णन निम्न प्रकार से किया गया है
इंदिकाये
सामण्णजीव तसथावरेसु इगिविगलसयलचरिमदुगे । चरिमस्स य दुतिचदुपणगभेदजुदे 11 (75) सामान्य से जीव का एक ही भेद है, क्योंकि 'जीव' कहने से जीव मात्र का ग्रहण हो जाता है। इसलिए सामान्य से जीव समास का एक भेद, स और स्थावर अपेक्षा से ये दो भेद, एकेन्द्रिय, विकलेन्द्रिय (द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय) सकलेन्द्रिय (पंचेन्द्रिय) की अपेक्षा तीन भेद । यदि पंचेन्द्रिय के' दो भेद कर दिये जायें तो जीव समास के एकेन्द्रिय, विकलेन्द्रिय, संज्ञी, असंज्ञी इस तरह चार भेद होते हैं । इन्द्रियों की अपेक्षा पांच भेद हैं, अर्थात् एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, पंचेन्द्रिय । पृथ्वी, जल अग्नि, वायु, वनस्पति ये पांच स्थावर और एक त्रस इस प्रकार कायकी अपेक्षा छह भेद हैं। यदि पांच स्थावरों में त्रस के विकल और सकल इस तरह दो भेद करके मिला दिये जाँय तो सात भेद होते हैं। और विकल, असंज्ञी, संज्ञी इस प्रकार तीन भेद करके मिलाने से आठ भेद होते हैं । द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, पंचेन्द्रिय, इस तरह चार भेद करके मिलाने से नव भेद होते हैं । और द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, असंज्ञी, संज्ञी इस तरह पाँच भेद मिलाने से दश भेद होते हैं।
द्वीन्द्रिय जीवों के नाम
वा
शम्बूकः शुक्ति कुक्षिकृम्यादयश्चैते द्वीन्द्रियाः
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कुन्थुः
शम्बूक, शङ्ख, सुक्ति-सीप, गिंडोलें, कौंडी तथा पेट के कीड़े आदि ये दो इन्द्रिय जीव माने गये हैं ।
गण्डूपदकपर्दकाः । प्राणिनो
घुणमत्कुणयूकाद्यास्त्रीन्द्रियाः
136
मताः ॥ ( 53 )
त. सा. अ. 2
त्रीन्द्रिय जीवों के नाम
पिपीलिका कुम्भी वृश्चिकश्चेन्द्रगोपकः
सन्ति
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जन्तव: ।15411
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