Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
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केवल चतुर्थ काल में ही मानव देहोच्छेद का प्रयत्न करते हैं, विदेह क्षेत्र में सर्वकाल में ही कर्मोच्छेद का प्रयत्न करते हैं। यहां कभी धर्म का उच्छेद नहीं होता इसलिए प्रकर्ष बुहलता की अपेक्षा विदेह है।
विदेह क्षेत्र का अवस्थान- निषध और नील के मध्य में विदेह क्षेत्र अवस्थित है। निषध से उत्तर, नील पर्वत से दक्षिण और पूर्वापर समुद्रों के मध्य में विदेह क्षेत्र की रचना है। पूर्वादि के भेद से विदेह चार प्रकार का है (1) पूर्व विदेह (2) अपर विदेह (3) उत्तर कुरू (4) दक्षिण कुरू।
रम्यक् क्षेत्र- रमणीय देश के योग से इस क्षेत्र का नाम 'रम्यक् क्षेत्र'. पड़ा है। यह रमणीय देश नदी, पर्वत और वन आदि से युक्त होने के कारण इसे रम्यक् कहते हैं।
रम्यक् क्षेत्र का अवस्थान- नील और रूक्मी पर्वत के अन्तराल में रम्यक् क्षेत्र की रचना है। नील पर्वत से उत्तर और रूक्मी पर्वत के दक्षिण की ओर पूर्व-पश्चिम समुद्र के बीच में रम्यक् क्षेत्र की रचना है। .
6. हैरण्यवत् क्षेत्र- हिरण्य नाले (सुवर्ण वाले) रूक्मी पर्वत के समीप होने से इसका नाम हैरण्यवत् क्षेत्र पड़ा है। .
हैरण्यवत् क्षेत्र का अवस्थान- रूक्मी और शिखरी के अन्तराल में इसका स्थान है। रूक्मी पर्वत की उत्तर दिशा में और शिख़री पर्वत के दक्षिण की ओर पूर्व-पश्चिम समुद्र के बीच हैरण्यवत्क्षेत्र की रचना है।
7. ऐरावत क्षेत्र- यह क्षेत्र ऐरावत क्षेत्र के योग से ऐरावत क्षेत्र कहलाता है। रक्ता और रक्तोदा नदियों के बीच-बीच अयोध्या नामकी नगरी है। इस नगरी का अनुपालक ऐरावत नाम का राजा हुआ है। उसी के सम्बंध से इस क्षेत्र का नाम ऐरावत पड़ा है।
ऐरावत क्षेत्र का अवस्थान- शिखरी पर्वत और पूर्व, पश्चिम और उत्तर तीनों समुद्रों के मध्य में ऐरावत क्षेत्र है। शिखरी कुलाचल और पूर्व पश्चिम तथा उत्तर में समुद्र के मध्य में ऐरावत क्षेत्र को अवस्थिति है।
ऐरावत क्षेत्र के मध्य में पूर्व के समान विजयार्ध पर्वत है। इस ऐरावत
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