Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
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उसका होना अर्थात् प्रति समय बदलते रहना परिणाम हैं।
धर्मादिक द्रव्य जिस रूप से होते हैं। वह तद्भाव या तत्त्व हैं। धर्मादि द्रव्यों का जो निज स्वरूप है वह उसका भाव तद्भाव कहलाता हैं। द्रव्यों के उस भाव को परिणाम कहते हैं अर्थात् द्रव्य जिस रूप में है उसके उसी रूप रहने को परिणाम या पर्याय कहते हैं।
वह परिणाम सादि और अनादि के भेद से दो प्रकार का हैं। धर्मादि द्रव्यों के गति उपग्रह, स्थिति उपग्रह, अवकाश दान, वर्तना आदि परिणाम अनादि हैं, क्योंकि जब से धर्मादि द्रव्य हैं तभी से इनके परिणाम हैं। धर्मादि द्रव्य पहले हों और गति उपग्रह, स्थिति उपग्रह बाद में किसी समय में हुए हो, ऐसा नहीं है। क्योंकि धर्मादि के साथ इनका सम्बन्ध अनादि है। धर्मादि अनादि हैं अत: गति उपग्रह आदि परिणाम अनादि हैं। बाह्य कारणों/निमित्त से जो उत्पाद होता है, जो द्रव्यों के परिणाम (पर्यायें) उत्पन्न होते हैं, वे परिणाम आदिमान् (सादि) हैं।
दोनों नयों के कारण सब द्रव्यों में सादि एवं अनादि दोनों परिणामों की सिद्धि होती है अर्थात् पर्यायार्थिक नय की विवक्षा से सर्व धर्मादि द्रव्यों में परिणाम सादि है और द्रव्यार्थिक नय की विवक्षा से सभी द्रव्यों के परिणाम अनादि है। यह विशेषता है कि धर्मादि चार अतीन्द्रिय द्रव्यों का आदि और अनादिमान् परिणाम आगम से जाना जाता है और जीव तथा पुद्गलों का परिणाम कथंचित् प्रत्यक्षगम्य भी होता है।
अध्याय 5
अभ्यास प्रश्न1. कौन-कौन सा द्रव्य अजीव काय (अस्तिकाय) है? 2. जीव भी द्रव्य क्यों है? 3. धर्म, अधर्म, आकाश एवं जीव द्रव्य की विशेषता का वर्णन करो? 4. पुद्गल अरूपी क्यों नहीं है ? 5. विश्व में एक-एक द्रव्य कौन से है तथा अनेक द्रव्य कौन-कौन से है? 6. कौन-कौन से द्रव्य निष्क्रिय हैं तथा कौन-कौन से सक्रिय हैं?
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