Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
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साथ, दो रूक्ष शक्त्यंश वालों का दो स्निग्ध शक्त्यंश वालों के साथ, दो रूक्ष शक्त्यंश वालों का दो रूक्ष शक्त्यंश वालों के साथ बंध नहीं होता । इसी प्रकार अन्यत्र भी जानना चाहिए।
प्रश्न
उत्तर
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• यदि ऐसा है तो सूत्र में 'सदृश' पद किसलिए ग्रहण किया है ? - गुणों की विषमता होने पर सदृशों (स्निग्ध-स्निग्ध या रूक्ष - रूक्षों) का बन्ध हो सकता है, इस बात को बताने के लिये सदृश शब्द का ग्रहण किया गया है। अर्थात् सदृश ग्रहण का यह प्रयोजन है कि, गुण वैषम्य होने पर विसदृशों का बन्ध तो होता ही है परसदृशों का भी बन्ध होता है।
णिध्दस्स णिध्देण दुराहिएण, लुक्खस्स लुक्खेण दुराहिएण । ध्दिस्य लुक्खेण हवेज्ज बंधो, जहण्णवज्जे विसमे समे, वा । (615) जीवकाण्ड
" स्नेह (स्निग्ध) का दो गुण अधिक वाले स्नेह से या रूक्ष से, रूक्ष का दो अधिक गुण वाले रूक्ष या स्निग्ध से बंध होता है । जघन्य गुण वाले का किसी भी तरह बंध नहीं हो सकता। दो गुण अधिक वाले सम (दो, चार, छह आदि का) और विषय गुण वाले ( तीन, पांच, सात आदि) का बंध होता है। "
बन्ध किनका होता है
यधिकादिगुणानां तु । ( 36 )
द्वि अधिक आदिगुणानां सदृशानाम् बिसदृशानाम् परमाणूनां परस्परेण बन्धस्तु भवति ।
A positive or a negative elementary particle combines with another of a similar or a dissimilar type if they differ in their degrees of Snigahatva or Ruksatva by two units.
दो अधिक आदि शक्त्यशं वालों का तो बन्ध होता है।
इस अध्याय के 33 वें
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सूत्र
से बंध प्रकरण चल रहा है। बंध के लिए
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