Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
View full book text
________________
अविभक्तमणण्णत्तं दव्वगुणाणं विभत्तमण्णत्तं। णिच्छंति णिच्चयण्हू तब्विवरीदं हि वा तेसिं॥(45)
जैसे-परमाणुका वर्णादि गुणों के साथ अभिन्नपना है अर्थात् उनमें परस्पर प्रदेशों का भेद नहीं है तैसे शुद्ध जीव द्रव्य का केवलज्ञानादि प्रगटरूप स्वाभाविक गुणों के साथ और अशुद्ध जीवका मतिज्ञान आदि प्रगट रूप विभाव गुणों के साथ तथा शेष द्रव्यों का अपने-2 गुणों के साथ यथासंभव एकपना है अर्थात् द्रव्य और गुणों के भिन्न-2 प्रदेशों का अभाव जानना चाहिये। निश्चय स्वरूप के ज्ञाता जैनाचार्य, जैसे-हिमाचल और विंध्याचल पर्वत में भिन्नपना है अथवा एक क्षेत्र में रहते हुऐ जल और दूध का भिन्न प्रदेशपना है ऐसा भिन्नपना द्रव्य और गुणों का नहीं मानते हैं तो भी एकांत से द्रव्य और गुणों का अन्यपने से विपरीत एकपना भी नहीं मानते हैं अर्थात् जैसे द्रव्य और गुणों में प्रदेशों की अपेक्षा अभिन्नपना है तैसे संज्ञा आदि की अपेक्षा से भी एकपना है ऐसा नहीं मानते हैं अर्थात् एकांत से द्रव्य और गुणों का न एकपना मानते हैं न भिन्नपना मानते हैं। बिना अपेक्षा के एकत्व व अन्यत्व दोनों को नहीं मानते हैं, किंतु भिन्न-2 अपेक्षा से भेदाभेद दोनों स्वभावों को मानते हैं। प्रदेशों की एकता से. एकपना है। संज्ञादिकी अपेक्षा द्रव्य और गुणों का अन्यपना हैं ऐसा आचार्य मानते हैं।
ववदेसा संठाणा संखा विसया य होंति ते बहुगा। ते तेसिमणण्णत्ते अण्णत्ते चावि विज्जंते॥(46) कथन या संज्ञा के भेद आकार के भेद संख्या या गणना और विषय या आधार ये बहुत प्रकार के होते हैं। ये चारों उन द्रव्य और गुणों की एकता में तैसे ही उसकी भिन्नपना में होते हैं।
णाणं धणं कुव्वदि धणिणं जह णाणिणं च दुविधेहिं। भण्णंति तह पुधत्तं एयत्तं चावि तच्चण्हू॥(47)
जैसे धनका अस्तित्व भिन्न है और धनी पुरुष का अस्तित्व भिन्न है . इसलिये धन और धनी का नाम भिन्न है, धन का आकार भिन्न है, धनी पुरुष का आकार भिन्न है, धनकी संख्या भिन्न है, धनी पुरुष की संख्या भिन्न है,
. 347
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org