Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
View full book text
________________
ववहारो पुण तिविहो, तीदो वटुंतगो भविस्सो दु। तीदो संखेज्जावलिहदसिद्धाणं पमाणं तु॥(578)
__ (गो.जी.) व्यवहारकाल के तीन भेद हैं- भूत, वर्तमान, भविष्यत् । इनमें से सिद्धराशिका संख्यात आवलि के प्रमाण से गुणा करने पर जो प्रमाण हो उतना ही अतीत अर्थात् भूतकालका प्रमाण है।
समओ ह वट्टमाणो, जीवादो सव्वपुग्गलादो वि।
भावी अणंतगुणिदो, इदि ववहारो हवे कालो।(579) वर्तमान कालका प्रमाण एक समय है। सम्पूर्ण जीवराशि तथा समस्त पुद्गलद्रव्यराशिसे भी अनंतगुणा भविष्यत् कालका प्रमाण है। इस प्रकार व्यवहार कालके तीन भेद.होते हैं।
समओ णिमिसो कट्ठा कला य णाली तदो दिवारत्ती। मासोदुअयणसंवच्छरो त्ति कालो परायत्तो॥(25)
(पंचास्तिकाय) समय, निमेष, काष्ठा, कला (नाली), घड़ी, अहोरात्र (दिवस, रात) मास, ऋतु, अयन और वर्ष ऐसा जो काल (अर्थात् व्यवहारकाल) वह पराश्रित
गुण का लक्षण द्रव्याश्रया निर्गुणा गुणाः। (41)
Gunas or attributes depend upon substance and are never without it. An attribute as such cannot be the subtratum of another attribute, although of course, many attributes can co-exist in one and the same substance at one and the same time and place. There can not be an attribute of an attribute.
जो निरन्तर द्रव्य में रहते हैं और गुणरहित हैं वे गुण हैं।
जिसमें गुण आश्रय लेते हैं अर्थात् जिसमें गुण रहते हैं वह आश्रय है।
345
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org