Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
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हाँ, चार रूक्ष शक्त्यंश वाले परमाणु के साथ अवश्य बन्ध होता है। उसी दो रूक्ष शक्त्यंश वाले परमाणु का आगे के पाँच आदि रूक्ष शक्त्यंश वाले परमाणुओं के साथ बन्ध नहीं होता। इसी प्रकार तीन आदि रूक्ष शक्त्यंश वाले परमाणुओं का भी दो अधिक शकत्यंश वाले परमाणुओं के साथ बन्ध जान लेना चाहिये। समानजातीय परमाणुओं में बन्ध का जो क्रम बतलाया है विजातीय परमाणुओं
में भी बन्ध का वही क्रम जानना चाहिये। कहा भी है“णिद्धस्य णिद्धेण दुराहिएण लुक्खस्स लुक्खेण दुराहिएण। णिद्धस्य लुक्खेण हवेज्ज बंधो जहण्णवज्जे विसमे समे वा"।
(जीवकाण्ड गा. 615) स्निग्ध का दो अधिक शक्त्यंश वाले स्निग्ध के साथ बन्ध होता है। रूक्ष का दो अधिक शक्त्यंश वाले रूक्ष के साथ बन्ध होता है। तथा स्निग्ध का रूक्ष के साथ सम या विषम गुणों के होने पर इसी नियम से बन्ध होता है। किन्तु जघन्य शक्त्यंश वाले का बन्ध सर्वथा वर्जनीय है।
.. बन्धेऽधिकौ परिणामिकौ च। (37) बन्धे अधिकगुणौ पुद्गलौ परमाणू वा स्कन्धौ परिणामिकौ च भवतः। In the process of union an elementary particle, an atom or a moleculo with a higher degree of Snigdhatva or Ruksatva absorbs the one with a lower degree into itself. बन्ध के समय दो अधिक गुण वाला परिणमन कराने वाला होता है। . बंध होने पर अधिक गुण वाला न्यून गुण वाले को अपने रूप में परिणमन करा लेता है। गीले गुड़ की तरह अवस्थान्तर (पर्यायान्तर) उत्पन्न करना परिणामकत्व है। जैसे अधिक मधुर रस वाला गीला गुड़ अपने में गिरी हुई धूलि आदि को मधुर रस वाला बनाने में धूलि का परिणामक है, उसी प्रकार अन्य भी अधिक गुण वाले परमाणु न्यून गुण वाले परमाणुओं के परिणामक होते हैं। अर्थात् दो गुण स्निग्ध वा रूक्ष वाले परमाणुओं को चार गुण वाले स्निग्ध या रूक्ष
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