Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
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इस प्रकार इसका ज्ञान कराने के लिए ग्रैवेयक का पृथक् ग्रहण किया गया है।
"उपरि-उपरि" के साथ दो-2 स्वर्ग का सम्बन्ध है। प्रथम सौधर्म और ऐशान स्वर्ग हैं, उन दोनों के ऊपर सानत्कुमार और माहेन्द्र हैं,उन दोनों के ऊपर ब्रह्मलोक और ब्रह्मोत्तर हैं, उन दोनों के ऊपर लान्तव और कापिष्ठ हैं, उन दोनों के ऊपर शुक्र, महाशुक्र, उन दोनों के ऊपर शतार, सहस्त्रार, उन दोनो के ऊपर आनत, प्राणत और इन दोनो के ऊपर आरण और अच्युत है।
__ मन्दर (सुदर्शन) मेरू की चूलिका पर ऋजु विमान है। मेरू पर्वत की चूलिका (शिखर) और ऋजुविमान में एक बालाग्र मात्र का अन्तर है। वैमानिक देवों में उत्तरोक्तर अधिकता स्थितिप्रभावसुखद्युतिलेश्या विशुद्धीन्द्रियावधिविषयतोऽधिकाः ।(20) Age, power, enjoyment, brilliance, purity of lesya (paint and thought colour) sense-faculties, visual knowledge (all) these go on incresing (as we go from the lower to the highest heavens. स्थिति, प्रभाव, सुख, द्युति, लेश्याविशुद्धि, इन्द्रियविषय और अवधिविषय की अपेक्षा ऊपर-ऊपर के देव अधिक हैं। स्थिति:- अपने द्वारा प्राप्त हुई आयु के उदय से उस भव में शरीर के साथ रहना स्थिति कहलाती है। प्रभाव:- शाप और अनुग्रहरूप शक्ति को प्रभाव कहते हैं। सुख:- इन्द्रियों के विषयों के अनुभव करने को सुख कहते हैं। द्युति:- शरीर, वस्त्र, और आभूषण आदि की कान्ति को द्युति कहते हैं। लेश्या:- कषाय से सहित मन, वचन, काय की प्रवृत्ति को लेश्या कहते हैं। लेश्या की विशुद्धि लेश्याविशुद्धि कहलाती है। इन्द्रियविषय और अवधिविषय:- इन्द्रिय और अवधिज्ञान का विषय इन्द्रियविषय
और अवधिविषय कहलाता है। ___इनसे या इनकी अपेक्षा वे सब देव उत्तरोत्तर अधिक-अधिक हैं। तात्पर्य
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