Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
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प्रदेश द्वारा स्कन्ध के संघात का निमित्त होने से स्कन्धों का कर्ता है, वह वास्तव में एक प्रदेश द्वारा जो कि एक आकाश प्रदेश का अतिक्रमण करने वाले (लांघने वाले) अपने गति परिणाम को प्राप्त होता है उसके द्वारा 'समय' नामक काल का विभाग करता है इसलिये काल का विभाजक है। वह वास्तव में एक प्रदेश द्वारा संख्या का भी विभाजक है, क्योंकि (1) वह एक प्रदेश द्वारा, उससे, रचे जाने वाले दो आदि भेदों पूर्वक द्रव्य संख्या का विभाग स्कन्धों में करता है (2) वह एक प्रदेश द्वारा, उसके जितनी मर्यादा वाले एक आकाश प्रदेश पूर्वक क्षेत्र संख्या के विभाग करता है, (3) वह एक प्रदेश द्वारा एक आकाश प्रदेश का अतिक्रम करने वाले उस गति परिणाम जितनी मर्यादा वाले समय पूर्वक का काल संख्या का विभाग करता है, (4) वह एक प्रदेश द्वारा, उसमें विवर्त्तन पाने वाले (परिवर्तित, परिणमित) जघन्य वर्णादिक भाव को जानने वाला ज्ञान पूर्वक भाव संख्या का विभाग करता है इस कारण वह संख्या का विभाजन करने वाला भी है। (1) विभाजक- विभाग करने वाला मापने वाला। स्कन्धों में द्रव्य संख्या का माप (अर्थात् वे कितने अणुओं-परमाणुओं से बने हैं ऐसा माप) करने में अणुओं की परमाणुओं की अपेक्षा आती है, अर्थात् वैसा माप परमाणु द्वारा होता है। क्षेत्र के माप का एकक (एकम्) 'आकाश प्रदेश' है और आकाश प्रदेश की व्याख्या में परमाणु की अपेक्षा आती है, इसलिये क्षेत्र का माप भी परमाणु द्वारा होता है। काल के माप का एकक 'समय' है और समय की व्याख्या में परमाणु की अपेक्षा आता है, इसलिए काल का माप भी परमाणु द्वारा होता है। ज्ञान भाव के (ज्ञान पर्याय के) माप का एकक “परमाणु में परिणमित जघन्य वर्णादि भाव को जाने उतना ज्ञान" है और उसमें परमाणु की अपेक्षा आती है, इसलिये भाव का (ज्ञान भाव का) माप भी परमाणु द्वारा होता है। इस प्रकार परमाणु द्रव्य, क्षेत्र काल और भाव का माप करने के लिए गज समान है।) (2) एक परमाणु प्रदेश बराबर आकाश के भाग को (क्षेत्र को) 'आकाश प्रदेश' कहा जाता है। वह ‘आकाश प्रदेश क्षेत्र का ‘एकक' है। गिनती के लिए, किसी वस्तु के जितने परिमाण को एक माप माना जाये, उतने परिणाम
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