Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
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है। नित्य परिवर्तनशील होते हुए भी इसका नाश नहीं होता है इसलिये उत्पाद, व्यय ध्रौव्य का सदा सद्भाव होता है इसलिये ये सदा सत् स्वरूप ही रहते हैं।
उत्पाद - स्वजाति को न छोड़ते हुए भावान्तर ( पर्यायान्तर) की प्राप्ति उत्पाद है। चेतन या अचेतन द्रव्य का स्वजाति को न छोड़ते हुए भी जो पर्यायान्तर की प्राप्ति है वह उत्पाद है। जैसे- मृत्पिण्ड में घट पर्याय अर्थात् मिट्टी जैसेअपने मिट्टी स्वभाव को छोड़कर घट पर्याय से उत्पन्न होती है। वह घट उसका उत्पाद है। उसी प्रकार जीव या पुद्गलादि अजीव पदार्थ अपने स्वभाव को न छोड़कर पर्यायान्तर से परिणमन करते हैं ।
व्यय - उसी प्रकार स्वजाति को न छोडते हुए पूर्व पर्याय के विनाश को व्यय कहते हैं। स्वजाति को न छोड़ते हुए चेतन वा अचेतन पदार्थ की पूर्व पर्याय का जो नाश होता है, वह 'व्यय' है। जैसे कि घट की उत्पत्ति होने पर मिट्टी के पिण्डाकार का नाश होता है।
ध्रौव्य- ध्रुव स्थैर्य कर्म का स्थिर रहना ध्रौव्य है । अनादि परिणामिक स्वभाव से व्यय और उत्पाद का अभाव है। अर्थात् अनादि परिणामिक स्वभाव की अपेक्षा द्रव्य का उत्पाद - व्यय नहीं होता है, द्रव्य ध्रुव रूप से रहता है। अर्थात् स्थिर रहता है। उसको ध्रुव कहते हैं। और ध्रुव का जो भी भाव या कर्म है, वह ध्रौव्य कहलाता है। जैसे कि, पिण्ड और घट दोनों अवस्थाओं में मृदुपना का अन्वय रहता है।
णत्थि विणा परिणामं अत्थो अत्थं विणेह परिणामो । दव्वगुण पज्जयत्थो अत्थो अत्थित्तणिव्वत्तो ।। (10) ॥
प्रवचनसार
लोक में परिणाम के बिना पदार्थ नहीं है और पदार्थ के बिना परिणाम नहीं है। द्रव्य, गुण व पर्याय में रहने वाला पदार्थ अस्तित्व से बना हुआ
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उत्पादो य विणासो विज्जदि सव्वस्स अट्ठजादस्स । पज्जाएण दु केणवि अट्ठो खलु होदि सब्भूदो ||18||
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