Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
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ध्रौव्य सहित परिणाम है वह उसका स्वभाव है।
ण भवो भंगविहीणो भंगो वा णत्थि संभवविहीणो । उत्पादो वि य भंगो ण विणा धोव्वेण अत्थेण ||100||
वास्तव में उत्पाद, व्यय के बिना नहीं होता और व्यय, उत्पाद के बिना नहीं होता तथा उत्पाद और व्यय, स्थिति ( ध्रौव्य) के बिना नहीं होते, और ध्रौव्य, उत्पाद तथा व्यय के बिना नहीं होता ।
नित्य का नियम तद्भावाव्ययं नित्यम्। ( 31 )
Parmanence means indestructibility of the essence or the quality of the substance.
उसके भाव से (अपनी जाति से) च्युत न होना नित्य है ।
जो प्रत्यभिज्ञानं का कारण है वह तद्भाव है, 'वही यह है' इस प्रकार के स्मरण को 'प्रत्यभिज्ञान' कहते हैं। वह अकस्मात् तो होता नहीं, इसलिए जो इसका कारण है वही तद्भाव है। इसकी निरूक्ति 'भवनं भावः, तस्य भावः तद्भाव:' इस प्रकार होती है। तात्पर्य यह है कि, पहले जिसरूप वस्तु को देखा है उसी रूप उसके पुनः होने से 'वही यह है' इस प्रकार का प्रत्यभिज्ञान होता है। यदि पूर्व वस्तु का सर्वथा नाश हो जाय या सर्वथा नयी वस्तु का उत्पाद माना जाय तो इससे स्मरण की उत्पत्ति नहीं हो सकती और स्मरण की उत्पत्ति न हो सकने से स्मरण के आधीन जितना लोकसंव्यवहार चालू हैं वह सब विरोध को प्राप्त होता है, इसलिए जिस वस्तु का जो भाव है . उस रूप से च्युत न होना तद्भावव्यय अर्थात् नित्य है ऐसा निश्चित होता है । परन्तु इसे कथंचित् जानना चाहिए। यदि सर्वथा नित्यता मान ली जाय तो परिणमनका सर्वथा अभाव प्राप्त होता है और ऐसा होने से पर संसार और इसकी निवृत्ति के कारणरूप प्रक्रिया का निषेध (अभाव) प्राप्त होता है।
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तत्वार्थसार में कहा भी है
द्रव्याण्येतानि नित्यानि तभ्दावान्न व्ययन्ति यत् ।
प्रत्यभिज्ञानहेतुत्वं
तभ्दावस्तु
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निगद्यते ॥ ( 14 )
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