Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
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है, जैसे- द्विअणुक इत्यादि तथा मनुष्य इत्यादिव्य तो अनवधि (मर्यादा रहित)
त्रिसमय अवस्थायी
(त्रिकालस्थायी).
है,
(इसलिये)
वैसा
( कादाचित्क-क्षणिक - अनित्य) नहीं है।
ण हवदि जदि सद्दव्वं असधुव्वं हवदि तं कहं दव्वं । हवदि गुणो अण्णं वा तम्हा दव्वं सयं सत्ता || (105)
यदि द्रव्य स्वरूप से ही सत् न हो तो निश्चित असत् होगा, जो असत् होगा वह द्रव्य कैसे हो सकता है ? ( अर्थात् नहीं हो सकता) अथवा यदि असत् न हो तो वह सत्ता से अन्य पृथक् होगा ? सो भी कैसे हो सकता है ? इसलिये द्रव्य स्वयं ही सत्ता रूप है।
यदि द्रव्य स्वरूप से ही सत् न हो तो उसकी दो गति यह होगी कि वह (1) असत् होगा अथवा ( 2 ) सत्ता से पृथक होगा। उनमें से यदि असत् होगा तो ध्रौव्य के असम्भव होने से स्वयं को स्थिर न रखता हुआ द्रव्य ही लोप हो जायेगा, और यदि सत्ता से पृथक् होगा तो सत्ता के बिना भी अपनी सत्ता रखता हुआ, इतने द्रव्य की सत्ता रखने मात्र प्रयोजन वाली सत्ता का लोप कर देगा।
स्वरूप से ही सत् होता हुआ ( 1 ) ध्रौव्य के सद्भाव के कारण स्वयं को स्थिर रखता हुआ, द्रव्य उदित होता है ( अर्थात् सिद्ध होता है), और ( 2 ) सत्ता से पृथक् रहकर ( द्रव्य) स्वयं को स्थिर ( विद्यमान ) रखता हुआ, इतने ही मात्र प्रयोजन वाली सत्ता को उदित (सिद्ध) करता है।
इसलिए द्रव्य स्वयं ही सत्व (सत्ता) रूप से स्वीकार करना चाहिए। क्योंकि भाव और भाववान ( द्रव्य) का अपृथक्त्व द्वारा अन्यत्व है प्रदेश भेद न होते हुए संज्ञा-संख्या लक्षण आदि द्वारा अन्यत्व है।
पविभत्तपदेसत्तं पुधत्तमिदि सासणं हि अण्णत्तमतब्भावो ण तब्भवं होदि
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जिसमें प्रदेशों की अपेक्षा पन्त भिन्नता हो वह पृथक्त्व है। ऐसे श्री महावीर भगवान् की आज्ञा है । स्वरूप की एकता का न होना अन्यत्व है। सत्ता और द्रव्य एक स्वरूप नहीं हैं तब किस तरह दोनों एक हो सकते
वीरस्स । कधमेगं || (106)
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