Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
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को उस वस्तु का एकक कहा जाता है। (3) परमाणु को एक आकाश प्रदेश से दूसरे अनन्तर (उत्तरवर्ती) आकाश प्रदेश में (मंद गति से) जाते हुए जो काल लगता है उसे 'समय' कहा जाता है।
एयरसवण्णगंधं दो फासं सद्दकारणमसदं।
खंधतरिदं दव्वं परमाणुं तं वियाणाहि ॥(81) परमाणु में तीखा, चरपरा, कसायला, खट्टा, मीठा इन पांच रसों में से एक काल में एक रस रहता है। शुक्ल, पीत, रक्त, काला, नीला इन पांच वर्गों में से एक वर्ण एक काल में रहता है। सुगन्ध, दुर्गंध दो प्रकार गन्ध पर्यायों में से एक कोई गन्ध एक काल में रहती है। शीत व उष्ण स्पर्शों में एक कोई स्पर्श तथा स्निग्ध रूक्ष स्पर्शो में एक कोई स्पर्श ऐसे दो स्पर्श एक काल में रहते हैं। ‘परमाणु' शब्द का कारण रूप होकर भी एक प्रदेशी होने से शब्द की प्रगटता नहीं करने से अशब्द है व जो ऊपर कहे हुए वर्णादि गुण व शब्द आदि पर्याय सहित स्कन्ध हैं उससे भिन्न द्रव्यरूप परमाणु है। जैसे-परमात्मा व्यवहार से द्रव्य कर्म और भावकर्म के भीतर रहता हुआ भी निश्चय से शुद्ध बुद्ध एक स्वभाव रूप ही है तैसे परमाणु भी व्यवहार से स्कन्धों के भीतर रहता हुआ भी निश्चय से स्कन्ध से बाहर शुद्ध द्रव्य रूप ही है। अथवा स्कंधातंरितका अर्थ है कि स्कन्ध से पहले से ही भिन्न है।
स्कन्धों की उत्पत्ति का कारण
भेदसंघातेभ्य उत्पद्यन्ते। (26) Molecules are formed in three different ways(1) By Bheda (division) (2) By Sanghata (union or sharing), and (3) By the combined process of division and union taking place simultaneously. भेद से, संघात से तथा भेद और संघात दोनों से स्कन्ध उत्पन्न होते है।
भेद = संधातों (मिले हुए पदार्थों) का दो कारणों से विदारण होना भेद है। बाह्य (निमित्त) अभ्यन्तर (उपादान) कारणों के कारण संघटित स्कन्धों
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