Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
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है। तथा पाँच अनुत्तर विमानों में अहमिन्द्रों का शरीर एक अरत्निप्रमाण है । विमानों की लम्बाई-चौड़ाई आदि रूप परिग्रह ऊपर-ऊपर कम है। अल्प कषाय होने से अभिमान भी ऊपर-ऊपर कम है।
वैमानिक देवों में लेश्या का वर्णन
पीतपद्मशुक्ललेश्या द्वित्रिशेषेषु । ( 22 )
(There are) पीत, पद्म, शुक्ल Lesya in 2, 3 (pairs and ) the remaining (heavens).
दो तीन कल्प युगलों में और शेष में क्रम से पीत,
वाले देव हैं।
दो स्वर्ग तक पीत लेश्या, उसके आगे तीन कल्प तक पद्म लेश्या, और शेष स्वर्ग में शुक्ल लेश्या होती है। यथा
पद्म और
सौधर्म और ऐशान स्वर्ग के देवों में पीत लेश्या होती है। यह मध्यम है । सानत्कुमार और माहेन्द्र स्वर्ग के देवों में पीत और पद्म लेश्या होती है । अर्थात् उत्कृष्ट पीत लेश्या है और जघन्य पद्म लेश्या है।
शुक्ल श्या
ब्रह्म, ब्रह्मोत्तर, लान्तव और कापिष्ठ इन चार स्वर्गों के देवों के पद्म श्या है। (यह मध्यम पद्म लेश्या है) ।
शुक्र, महाशुक्र, शतार और सहस्रार इन चार स्वर्गों के देवों में पद्म और शुक् लेश्या है। (प्रकृष्ट पद्म और जघन्य शुक्ललेश्या है)
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आनत, प्राणत, आरण, अच्युत, नवग्रैवेयक और नव अनुदिशों के देवों शुक्लेश्या होती है। और अनुत्तर विजय वैजयन्त जयन्त अपराजित और सर्वार्थसिद्धि में परम शुक्ललेश्या होती है।
कल्प संज्ञा कहाँ तक है ?
प्राग्ग्रैवेयकेभ्यः कल्पा: । ( 23 )
(The heavens) before (we reach). The graiveyakas (are called) Aripas.
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